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________________ 101 कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥ ६४८॥ भासग्गहे विट्टिए भविस्सइ पुणो मम सासणेणं उदय पूया भविस्सइ साहुणीणं वि सावयाणं वि सावियाणं उदय पूया भविस्सइ ॥३३॥ शब्दार्थ -- अब गौतमस्वामी पूछते हैं - [भंते] हे भगवन् [तुम्हाणं] आपका [[स] शासन [कथा] कब [हायमाणे] हीयमान [भविस्संति] होगा [कथा] कब फिर [ उदिए ] उदित [ भविस्सति] होगा ? [केवइयं कालं] कितने काल तक [सासणे ] शासक [ore] स्थित - स्थिर [ भविस्सति ] होगा ? [ गोयमा ] हे गौतम! [एगवीसं वाससहस्से हिं] एकवीस हजार वर्ष पर्यन्त [मम] मेरा [ सासणे ] शासन [ठिए ] स्थिर [वि] रहेगा [अंतराय ] उस बीच में [दो वाससहस्सेहिं] दो हजार वर्ष पर्यन्त [मम सासणे ] मेरा शासन [ हायमाणे ] हीयमान [भविस्सति ] होगा | [ hi] वह किस कारण से [ते] हे भगवन् [एवं ] इस प्रकार से [बुच्चइ] आप कहते हैं - [ गोयमा !] हे गौतम ! [मम] मेरे [जम्मनक्खत्ते] जन्म नक्षत्र के उपर t SIL भगवच्छा सनावधि कथनम् ॥६४८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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