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________________ . कल्पत्रे भगवतोकेवलज्ञान सशब्दार्ये ॥४४८॥ प्राप्ति - मूलम्-लए णं से भगवं अरहा जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स आगइं गई ठिई चवणं उववायं भुत्तं पीयं कडं पडि- सेवियं आवीकम्मं रहो कम्म लवियं कहियं माणसियंति सव्वे पज्जाए जाणइ पासइ । सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावाइं जाणमाणे पासमाणे विहरइ। तए णं समणरस भगवओ महावीरस्स केवलवरणाणदसणुप्पत्तिसमए सव्वेहि भवणवइवाणमंतरजोइसिय विमणवासी चोसद्रि इंदा देवेहि य देवीहि य उवयंतेहि य उप्पयंतेहि य एणे मह दिव्वे देवुज्जोए देवसण्णिवाए देवकहकहे उप्पिंजलगभूए या वि होत्था ॥६॥ शब्दार्थ-[तएणं से भगवं अरहा जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स] तब भगवान् अर्हन् और जिन हो गये । केवली सर्वज्ञ और india ॥४४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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