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________________ IYARI कल्पसूत्रे सन्दार्थ ॥४४७॥ उज्जोएमाणा पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं आगम्मागम्म चतुःषष्ठि इन्द्राणां रत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति करित्ता वंदंतिक कार्यकथन नमसंति वंदित्ता नमंसित्ता साइं साइं नामगोयाइं सावेंति णच्चासण्णे णाइदूरे सुरसूसमाणा नमसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥५॥ भावार्थ-ये सभी इन्द्र अपने अपने दिव्य तेजसे अपनी दिव्य लेश्यासे दसों दिशाएं उद्योतित करते प्रकाशित करते श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीपवर्ति होकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की आद- । क्षिण प्रदक्षिणा करके उनको वंदना की नमस्कार किया वंदना नमस्कार करके अपने अपने नाम गोत्र का उच्चार किया तदनंतर भगवान् से अधिक दूर नहीं एवं अधिक समीपभी नहीं इस प्रकार बैठकर पर्युपासना करते हुए, नमस्कार करते हुए भगवान् कीसन्मुख हाथ जोडकर पर्युपासना करनेलगे ॥५॥ ॥४४७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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