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________________ भगवतो नार्यदेशसंजातपरीपहोपसर्ग वर्णनम् कल्पसूत्रे , भुजाएँ नहीं स्थापित करते थे । भगवान् ने इस प्रकार का जो उत्कृष्ट और अनुपम सशब्दार्थे आचार पालन किया, उसका हेतु बतलाते हैं-अन्य मुनिजन भी इस प्रकार विहार ॥३०॥ करें, इस हेतु से अहिंसक और अप्रतिज्ञ [इहलोक-परलोकसंबंधी प्रतिज्ञा से रहित] भगवान् ने मूलगुणों एवं उत्तरगुणों की आराधना आचार का बार-बार उत्कर्ष के साथ पालन किया ॥५१॥ ___ भगवओ विहारहाणाणि मूलम्-कयाइ भगवं आवेसणेसु वा सहासु वा पवासु वा, एगया कयाइ सुण्णासु पणिअसालासु पलियट्ठाणेसु पलालपुंजेसु वा, एगया आगंतुयागारे आरामागारे णगरे वा वसीअ। सुसाणे सुण्णागारे रुक्खमूले वा एगया वसी। एएसु ठाणेसु तहप्पगारेसुअण्णेसु ठाणेसु वा एवं वसमाणे समणे भगवं तत्थ तत्थ आहारं आहारेंति SC ॥३०॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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