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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे 1124311 ठावे तओ दिवणे राया भगवं पुच्छिय भाया किं दलयामो किं पयच्छामो किंवा ते हियइच्छिए सामत्थे तरणं भगवं एवं वयासी - इच्छामि णं भाया ! कुत्तियावणाओ रयहरणं पडिग्गहं च उवणेह - कासवं च सद्दावेह । तएणं से दवणे या भगवओ अभिनिक्खमणमहोच्छवं करेइ ||३७|| शब्दार्थ - [तेणं कालेणं तेणं समएणं] उस काल और उस समय में [लोगंतिय देवानं सपरिवाराणं आसणाई चलंति] परिवार सहित लोकान्तिक देवों के आसन चलायमान हुए [तणं ते देवा भगवओ निक्खमणाभिप्पायं ओहिणा आभोगिय भगवओ अंतिए आगमि आगासे ठिच्चा ] तब वे देव भगवान के दीक्षा अंगीकार करने के अभिप्राय को अवधिज्ञान से जानकर भगवान के समीप आये । और आकाश में स्थित होकर [भयवं वंमाणा नर्मसमाणा एवं वयासी - जय जय भगवं ! बुज्झाहि लोगनाह !] भगवत: संवत्सर दानपूर्वक निष्क्रमण वर्णनम् ॥१५३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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