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________________ ७४ - विपाकश्रुते यावत्पूर्वभवः पूर्वभवपृच्छा गौतमेन कृतेति भावः । भगवान् कथयति-'मणीपुरं णयर' मणीपुरं नगरम् । तत्र 'णागदत्ते गाहावई' नागदत्तो गाथापति रासीत् । तेन इंददत्ते अणगारे पडिलाभिए' इन्द्रदत्तोऽनगारः प्रतिलम्भितः । _ 'जाव सिद्धे' यावत्-अस्मिन्नेव भवे सिद्धोऽभवत् ॥ मू०१॥ ॥ इति सप्तममध्ययनं समाप्तम् ॥ २ ॥७॥ ॥ अथाष्टममध्ययनम् ॥ ॥ मूलम् ॥ अहमस्स उक्खेवो । सुघोसं णयरं, देवरमणे उज्जाणे, वीरसेणो जक्खो, अज्जुणो राया, दत्तवई देवी भदणंदी कुमारे, सिरिदेवीपामोक्खाणं पंचसयरायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं, जाव श्री तीर्थकर महावीर प्रभु का यहां आगमन हुआ। सब ने प्रभु के पास पहुँचकर धर्मामृत का पान किया । 'जावपुन्वभवो' महावल कुमार के पूर्वभव को गौतमने प्रभु से पूछा । प्रभुने कहा-'मणिपुर णयरं' मणीपुर नामका एक नगर था । 'णागदत्ते गाहावई' वहां नागदत्त नामका एक गाथापति रहता था । ' इंदत्ते अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे' उसने इन्द्रदत्त नामके मुनिराज को आहार-दान दिया। इससे उसने मनुष्यायु का बंध किया। वही मर कर महाबल हआ है। आगे यह दीक्षा लेकर इसी भव में मुक्तिका लाभ प्राप्त किया |सू०१॥ ॥ सप्तम अध्ययन सम्पूर्ण ॥७॥ धर्म उपदेश ३थी अभूत पान यु. 'पुवभव पुच्छा' भडाम शुभारना पूल विषे गौतम स्वामी प्रसुने पूछ्यु त्यारे प्रभुमे यु मणीपुरं णयरं । भारीपुर नाभन मे न तु, 'णागदत्ते गाहावई' त्यां नागदत्त नाभना में गायापति रता ता; तरी 'इंददत्ते अणगारे पडिलाभिए जावसिद्धेन्द्रहत्त नामना મુનિરાજને આહારદાન કર્યું, તે પુણ્યથી તેને મનુષ્યના આયુષ્યને બંધ થયે, પછી તે મરણ પામીને અહિં મહાબલ થયેલ છે, આગળ પર દીક્ષા લઈને આ ભવમાં भुजितनी म भगवशे. (२० १) છે. સાતમું અધ્યયન સંપૂર્ણ ૭
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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