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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ०. ९, देवदत्तावर्णनम् विरहः शल्यवदन्तरं दहति' इत्यादि-विलापं कुर्वन् 'सिरीए देवीए ' श्रियो देव्याः 'महया इढि०' महता ऋद्धिसत्कार-समुदयेन ‘णीहरणं करेइ' निर्हरणं करोति-अग्निसंस्कारं करोति । 'करित्ता' कृत्वा 'आसुरुत्ते' आशुरुष्टः-अतिकुपितः 'देवदत्तं देवि' देवदत्तां देवीं 'पुरिसेहि पुरुषैः राजपुरुषैः 'गिण्हावेइ' ग्राहयति, 'गिहावित्ता' ग्राहयित्वा एएणं 'विहाणेणं' एतेन प्रत्यक्षदृष्टेन विधानेन प्रकारेण 'वझं वध्याम् 'इयं हन्तव्या' इति 'आणवेइ' आज्ञापयति । ___ एवं खलु गोयमा' हे गौतम ! 'देवदत्तादेवी' देवदत्ता देवी 'पुरापोराणाणं' पुरापुराणानां-पूर्वभवकृतानां 'जाव' यावत्-दुश्चीर्णानां दुष्पतिक्रान्तानाम् अशुभानां पापानां कर्मणां पापकं फलत्तिविशेषं प्रत्यनुभवन्ती 'विहरइ विहरति ।।मु०२०॥ ॥ मूलम् ॥ देवदत्ता णं भंते ! देवी इओ कालमासे कालं किच्चा छोड कर कहां चली गई, तुम्हारा विरह हमें इस समय शल्य के समान अरुन्तुद हो रहा है, तुम्हारे वियोग से मेरा हृदय फटा जा रहा है, इस रूप से विलाप करते हुए "सिरीए देवीए महया इढि० णीहरणं करेइ' श्रीदेवी की बडे उत्सव के साथ श्मशान यात्रा-अर्थी निकाली 'करित्ता' अग्नि संस्कार हो जाने के पश्चात् उसने फिर 'आसुरुत्ते अत्यंत कुपित होकर 'देवदत्तं देवि देवदत्ता देवी को 'पुरिसेडिं गिण्हावेइ' राजपुरुषों द्वारा पकडवा लिया। 'गिहावित्ता एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ' और पकडवा कर इस प्रत्यक्ष दृष्ट विधि के अनुसार वध्य घोषित किया है। ‘एवं खलु गोयमा !' इस प्रकार हे गौतम ! 'देवदत्ता देवी' देवदत्ता देवी 'पुरापुराणाणं जाव विहरइ' पूर्वभव में किये हुए दुश्चीर्ण, दुष्मतिक्रान्त एवं अशुभतम पाप कर्मों के विशेष फलको भोंग रही है।।सू०२०॥ તમે આજ અમને છોડીને કયાં ચાલ્યા ગયાં, તમારા વિગથી મારૂ: હદય ફરી नय छ,' मा प्रभार विमा५ ४२ता ५४ 'सिरीए देवीए महयाइढि० णीहरणं करेई' श्रीदेवीनी मोटर सपनी साथे श्मशान यात्रा tढी 'करिता' अनि संसार ४ पछी तेथे 'आसुइत्ते' मत्यत ५ शने 'देवदत्तं देविहेपत्ता पान 'पुरिसेहिं गिण्हावेइ' पुरु द्वारा ५४ी बीधी. 'गिहावित्ता एएणं विहाणेणं वझं आणवेइ भने प्रत्यक्ष पुरावाने १२0 ते वित्ताय छे ये प्रमाण २४ सीधु. 'एवं खलु गोयमा ! म प्रभारी गौतम ! 'देवदत्ता देवी' वित्ता वा 'पुरापुराणाणं जाव विहरई पूलमा ४२वा हुश्शी प्रतिtra અને અશુભતમ પાપ કર્મોના વિશેષ ફળને ભેગવી રહી છે. (સૂ) ૨૦)
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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