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________________ विपाकश्रुते ॥ मूलम् ॥ तए णं से पूसणंदी राया मुहुत्तरेणं आसत्थे समाणे वहुर्हि२ राईसरजाव सत्थवाहेहि मित्त जाव परियणेण य सद्धिं रोयमाणे३ सिरीए देवीए महया इड्ढि० णीहरणं करेइ, करित्ता आसुरुत्ते देवदत्तं देविं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिहावित्ता एएणं विहाणेणं वन्झं आणवेइ । एवं खलु गोयमा ! देवदत्ता देवी पुरापोराणाणं जाव विहरइ ॥ सू० २० ॥ टीका 'तए णं से इत्यादि । 'तए णं से ततः खलु स 'पूसणंदी राया' पुष्पनन्दी राजा 'मुहुत्तरेण मुहूर्तान्तरेण-किञ्चित्कालेन 'आसत्ये समाणे आस्वस्था-लब्धचेतनः सन् 'बहुहि' बहुभिः 'राईसर जाव सत्यवाहेहि राजेश्वरयावत्सार्थवाहैः-राजेश्वरतलबरमाडम्बिककौटुम्बिकेभ्यश्रेष्ठिसेनापतिसार्थवाहः मित्त जाव परियणेण य मित्रयावत्परिजनेन-मित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनेन च 'सद्धि साध रोयमाणे३' रुदन् कंदमाणे क्रन्दन्-उच्चैः-स्वरेण हा मातः ? क्य गतासि ?' इत्यादि, 'विलयनाणे' विलपन्'हे मातः ! नव . चंपक वृक्ष की तरह धस शब्द पूर्वक सर्वाङ्गों सहित-एकदम जमीन पर गिर गया ॥ सू० १९ ॥ _ 'तए णं से इत्यादि । 'तए णं से इसके बाद से पूसणंदी राया' उस पुष्पनंदी राजाने 'मुहुत्तरेणं' कुछ कालके पश्चात् 'आसत्थे समाणे सचेत होकर 'बहुहिं राईसर जाव सत्यवाहेहि मित्त जाव परियणेण य' बहुत से राजेश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्विक. इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति एवं सार्थवाही तथा मित्र से लेकर परिजनों के 'सद्धि साथ रोयमाणे३' मिलकर रोते हुए आक्रन्दन करते हुए एवं 'हे मातः ! तुम आज हम को તે પ્રમાણે ધસ શબ્દપૂર્વક સર્વાગ સહિત એકદમ જમીન પર પડીગ યા. (સૂ૦ ૧૯) 'तए णं से इत्यादि ___'तए णं ते पछी 'से पूसणंदी राया ते पन हा शलमे 'मुहुत्तंतरेणं' यो समय गया पछी 'आसत्ये समाणे' अयत यन 'बहुहि राईसर जाव सत्यवाहेहि मित्त जाव परियणेणय घgir शरेश्वर, त३५२, भांडभि.. मि, इस्य श्रेति, सेनापति, सार्थवाही तथा भित्रया ने परिजनोनी ‘सद्धि' साथै 'रोयमाणे३' मदीने शेता-३६न तो भान ४२ता ५ 3 भात!
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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