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________________ ६५८ • विपाकश्रुते टीका . 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं' ततः खलु ‘से दत्ते सत्थवाहे' स दत्तः सार्थवाहः 'ते पुरिसे' तान् पुरुपान् 'एन्जमाणे' एजमानान् आगच्छतः 'पासई' पश्यति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा 'हटतुट्ठ०' हृष्टतुष्टहृदयः 'आसगाओ अब्भुटेइ' आसनाद् अभ्युत्तिष्ठति, 'अब्भुटेत्ता' अभ्युत्थाय 'सत्तट्ठपयाई' सप्ताष्टपदानि 'अब्भुगए' अभ्युद्गतः तेपां पुरुषाणां संमुखं गतः' 'आसणेणं' आसनेन-आसनदानेन 'उवणिमंतेइ' उपनिमन्त्रयति आसनोपरि उपवेष्टुं प्रार्थयति । 'उवणिमंतित्ता' उपनिमन्त्र्य 'ते पुरिसे' तान् पुरुषान् ‘आसस्थे' आस्वस्थान-स्वस्थीभूतान् 'वीसत्थे' विस्वस्थान विशेषेण स्वस्थान् ‘सुहासणवरगए' सुखासनवरगतान् सुखासनोपविष्टान् एवं बयासी' एवमवादीत-किमवादीत ? इत्याह -'संदिसंतु णं' इत्यादि । 'संदिसंतु णं देवाणुप्पिया' संदिशन्तु-आज्ञापयन्तु खलु हे देवानुपिया! 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से दत्ते सत्थवाहे' दत्त सार्थवाहने ' ते पुरिसे एज्जमाणे पासई' आते हुए उन राजपुरुषों को देखा। पासित्ता हहतुढ० आसणाओ अब्भुटेई' देखकर वह बड़े ही हर्षभाव से युक्त होकर एवं सन्तुष्ट मन हो अपने आसन से उठखडा हुआ और 'अब्भुट्टित्ता' उठ कर 'सत्तहपयाई अभुग्गए' उन के सत्कार के लिये ७-८ पग सामने गया । उनको आगे लेकर फिर उसने उनसे 'आसणेणं उवणिमंतेई' आसन पर पैठने की प्रार्थना की । 'उवणिमंतित्ता ते पुरिसे आसत्थे वीसत्थे सुहासण वरगए एवं वयासी' प्रार्थना करने पर जब वे सब आसन पर बैठ गये तब आस्वस्थ एवं विशेषरूप से प्रसन्नचित्त बने हुए राजपुरुषों से दत्तसार्थवाह ने इस प्रकार कहा-'संदिसंतु णं देवाणुप्पिया किमागमण 'तए णं' या 'तए णं से दत्ते सत्यवाहे हत्त साथ पाई 'ते पुरिसे एज्जमाणे पासई' भावता पुरुषाने या 'पासित्ता हतुट० आसणाओ अन्भुटेइन ઘણુજ હર્ષ ભાવ સાથે અને સંતુષ્ટમન થઈને પિતાના આસન ઉપરથી ઉભા થયા અને 'अन्भुहिता' ही 'सत्तट्टपयाई अन्मुग्गए' तना सार भाट ७-८ पता सामे गया. तेभाने माग ४ीने तभणे तेमाने (मावता सापुरुषान) 'आसणेणं उवणिमंतेइ सासन ५२ मेसवानी प्रार्थना ४३. 'उवणिमंतित्ता ते पुरिसे आसत्थे वीसत्थे सुहासणवरगए एवं बयासी' प्रार्थना ४ा पछी न्यारे ते सो मासन ५२ બેસી ગયા, તે સી રાજપુને વિશેષ પ્રસન્ન થઈને દત્ત સાર્થવાહે આ પ્રમાણે કહ્યું'संदिसंतु णं देवाणुप्पिया किमागमणप्पओयणं' हा देवानुप्रिय ! मापने मड़ा
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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