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________________ - - - - विपाकचन्द्रिका टीका श्रु० १, अ० ९, देवदत्तावर्णनम् ६११ उपागत्य 'नमाणनियं तामाज्ञप्तिकांपूर्वोक्तामातां पञ्चपिणनि प्रत्यर्पयन्ति ग्वामिन् ! कृटागारशाला संपादिताऽस्माभिरिति निवेदयन्तानि ॥ १.६ ।। ॥ मूलम् ॥ तए णं से सीहसेणे राया अण्णया कयाई एगणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगणाई पंचमाइलयाई आसंतेइ । तए णं तासि एगणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगणाई पंचलाइसयाई सीहसेणेणं रण्णा आमंतियाई ससाणाई सवालंकारविमृसियाई जहाविभवेणं जेणेव सुपट्टे जयरे जेणेव सीहलेणे राया तणेव उवागच्छति । तए णं से सीहसेणे राया एगणाणं पंचदेवीसयाणं एगूणाणं पंचण्हं माइसयाणं कुटागारसालं आवसहंदलयइ ।मु०७॥ दीका। 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से सीहसणे गया ननः खलु म सिंह सेनी राजा 'अण्णया कयाई अन्यदा कदाचित एकरिमन समये एगृणगाणं' - एकोनानां 'पंचण्हं देवीसवाणं' पञ्चानां देवीशतानाम् एगृणाई पंचमासमा एकोनानि पञ्चमातृशतानि नवनवत्यधिकचतुःशनसंख्य काः विवश: 'आमा' वे जहां सिंहसेन राजा विराजमान थे वहां पर आये और 'उनागच्छित्ता तमाणत्तियं पचपिणंति आकर निवेदन किया कि राजा: आपकी आज्ञानुसार कुटाकार शाला बन कर नेयार हो चुकी है । । तए णं से इत्यादि ।। 'नए ण कुटाकार शाला के सम्पूर्णरूप से निर्मिनसे पुराने बाद 'से सीदसणे राया इस सिंहासन गजान अाया गया किसी एक समय 'रागण गाणं पंचम देवीयमाणं पणाचनालयामानप.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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