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________________ विपाकचन्द्रिका टोका, श्रु० १, अ० ९, देवदत्तावर्णनम् `णान्वयः, किं संप्रेक्षन्ते किं विचारयन्तीत्याकाङ्क्षायामाह-‘एवं खलु' इत्यादि । 'एवं खलु सीहसेणे राया' एवं खलु सिंहसेनो राजा 'सामाए देवीए' श्यामायां देव्यां 'मुच्छिए४' 'मुच्छितो गृद्धो ग्रथितोऽध्युपपन्नः सन् 'अम्हं धूयाओ' अस्माकं दुहितः ‘णो आढाइ' नो आद्रियते ‘णो परिजाणाई' नो परिजानाति-द्रष्टुमपि नेच्छति 'तं सेयं खलु' तच्छेयः खलु 'अम्हं' अस्माकं 'सामं देविं' श्यामां देवीम् 'अग्गिप्पओगेण वा' अग्निपयोगेण वा 'विसप्पओगेण वा' विषप्रयोगेण वा 'सत्थप्पओगेण वा' शस्त्रप्रयोगेण वा 'जीवियाओ ववरोवित्तए' जीविताद् व्यपरोपयितुम् , एवं 'संपेहेंति' संप्रेक्षन्ते-विचारयन्ति । 'संपेहित्ता' विचार्य ता एकोनपञ्चशतमातरः, 'सामाए देवीए' श्यामाया देव्याः 'अंतराणि य' अन्तराणि च-अवसराणि 'छिद्दाणि य' छिद्राणि च-दूषणानि 'विरहाणि य' विरहांश्च राजानुपस्थितिरूपान्-एकान्तस्थानानि वा, 'पडिजागरमाणीओ२' प्रतिजाग्रत्यः सुना अर्थात् 'एवं खलु सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए४ अम्हं धूयाओ णो आढाइ णो परिजाणाइ' यह सिंहसेन राजा हमारी लडकियों से न बोलता-चालता है और न इनकी तरफ देखता ही है, किन्तु रातदिन श्यामा देवी में ही अत्यंत आसक्त बना रहता है, त सेयं खलु अम्हं सामं देवीं अग्गिपओगेण वा विसप्पओगेण वा सत्थप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए' तो अब इसीमें हमारी भलाई है कि हम लोग उस श्यामा देवी को अग्नि के प्रयोग से विषके प्रयोग से अथवा शस्त्र के प्रयोग से जीवन से वियुक्त कर दें। 'एवं संपेहेंति' इस प्रकार उन्होंने-सबने विचार किया । 'संपेहित्ता' विचार करने के बाद वे सब अब 'सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणीओर विहरंति' श्यामादेवी के छिद्रों की, दूषणों की, राजा की अनुपस्थिति सांनी अर्थात 'एवं खलु सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए४ अम्हं ध्याओ णो आढाइ णो परिजाणाइत सिंडसेन 1 समारी पुत्रीमा साथै બેલતા–ચાલતા નથી તેમના તરફ જતા પણ નથી અને રાત્રી દિવસ શ્યામા દેવી S५२ अत्यन्त भासत मनी २२॥ छ. 'तं सेयं खलु अम्हं सामं देविं अग्गिप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा सत्थप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए' वे તે અમારૂં હિત એ રીતે જ છે કે અમે તે શ્યામાદેવીને અગ્નિના પ્રયોગથી, વિશ્વના प्रयोगथा मथवा शस्खन अयोगथा तेना नना नाश श नमी 'एवं संपेहेति' 20 प्रमाणे ते सोये भी विया२ ज्यो. 'संपेहित्ता' विया२ ४शन पछी ते सी वे 'सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणीओ२ विहरंति' શ્યામાદેવીનાં છીદ્રોની, દૂષણની, રાજાની ગેરહાજરી રૂપ વિરહની, અથવા કેઈ સમય
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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