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________________ - ६०२ विपाकश्रुते श्रीकमहानसिकजीवस्य षष्ठपृथिव्याः स्वायुःक्षयेणास्या गर्भे समवतरणम् । त्रिषु मासेषु पूर्णेषु 'दोहला' उत्पन्नदोहदा पूर्णदोहदा-मांसमदिराभक्षणरूपदोहदप्रादु र्भावस्तत्पूर्तिश्च, तत्पश्चात्-'जाव' यावत्-नवसु मासेषु प्रतिपूर्णषु 'दारगं' दारकपुत्रं 'पयाया' प्रजाता जनितवती जाव यावत्-परम्परागतं पुत्रजन्मोत्सवं कृत्वा प्राप्ते द्वादशे दिवसे मातापितरौ तस्य नामधेयं कुरुतः, तथाहि-'जम्हा णं' यस्मात् खलु 'अम्हं' अस्माकं 'इमे दारए' अयं दारकः 'सोरियस्स जक्खस्स शोर्यस्य यक्षस्य 'उवाइयलद्धे' उपयाचितलब्धः उपयाचनापाप्तोऽस्ति, 'तम्हा णं' तस्मात्खलु 'होउ णं' भवतु खलु 'अम्हे' अस्माकम् 'इमे दारए' अयं दारकः 'सोरियदत्ते णामेणं' शौर्यदत्तो नाम्ना । 'तए णं से सोरियदत्ते दारए' ततः कहा था । 'उवाइयं' इसने उसके दोहले की पूर्ति के साधनों को जुटाने की अनुमति देदी । यह भी अपने 'दोहलं जाव' दोहद की पूर्ति के लिये शौर्ययक्ष के आयतन में पहुँची, और वहां उसने उसकी मनौति (मानता) की। इस प्रकार जब इसका दोहला पूर्ण हो चुका तब नौ माह के पूर्ण होते ही उसने 'दारगं पयाया' एक पुत्र को जन्म दिया। मातापिता ने पुत्रप्राप्ति का ठाटबाट के साथ उत्सव किया। ११ दिन के व्यतीत होने पर १२ वें दिन में उन्होंने ऐसा ख्याल कर कि-'जम्हाणं अम्हं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स उवाइलद्धं यह पुत्र हमें शौर्ययक्ष की आराधना से प्राप्त हुआ है 'तम्हाणं होउणं अम्हे इमे दारए सारियदत्ते णामेणं' इसलिये इसका नाम शौर्यदत्त रखना चाहिये अतः उसका "शौर्यदत्त" नाम रखा । 'तए णं से सोरियदत्ते तिना साधनाने मेजवानी अनुमति आधी ते पशु (स्त्री) 'दोहला जाव' पोताना દેહલાની પૂર્તિ માટે શૌર્યયક્ષના નિવાસ સ્થાને પહોંચી અને ત્યાં તેણે યક્ષની માનતા કરી, આ પ્રમાણે જ્યારે તેને દેહલે પૂર્ણ થઈ ચુક્યું ત્યારે નવ ૯ માસ પૂરાં થતાં तथे 'दारगं पयाया' मे पुत्रने म म.21. भा11-पिता पुत्र प्राप्त था તેથી મોટા ઠાઠ–માઠથી એક ઉત્સવ કર્યો. બાળકના જન્મનાં અગિયાર દિવસ પુરાં शने न्यारे १२ मार। [१७ थयो त्यारे तेरे मेरो विचार श्यों , 'जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स उवाइलद्धे' मा पुत्र अमने शोय यक्षनी माराधनाथी प्राप्त थये। छ, 'तम्हाणं होउणं अम्हे इमे दारए सोरियदत्ते णामेणं' मेटसा माटे मेनु नाम शीर्य हत्त रामनये. या निर्णय शने " शौर्यत्ति” नाम राज्यु. 'तए णं से सोरियदत्ते दारए पंचधाइपरिग्गहिए
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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