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________________ ५६६ विपाकश्रुते पुष्पगन्धमाल्यालङ्कारं 'ठवेइ' स्थापयति, 'ठवित्ता' स्थापयित्वा 'पुक्खरिणी' पुष्करिणीम् , 'ओगाहेइ' अवगाहते-प्रविशति, 'ओगाहित्ता' अवगाव-प्रविश्य 'जलमजणं' जलमज्जनं जलवुडनं 'करेइ' करोति, 'करित्ता' कृत्वा 'जलकीडं' जलक्रीडां जललीलां 'करेइ' करोति, 'करित्ता' कृत्वा 'हाया' स्नाता 'कयकोउयमंगलपायच्छित्ता' कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्ता 'उल्लपडसाडिया' आर्द्रपटशाटिका आईवस्त्रेव, 'पुक्खरिणी' पुष्करिणी 'पच्चुत्तरइ' प्रत्युत्तरति-ततो वहिनिस्सरति, ‘पच्चुत्तरित्ता' प्रत्युत्तीर्य-बहिनिस्सृत्य 'ते' तं-पूर्वस्थापितं 'पुप्फ०' पुष्पगन्धमाल्यालङ्कारं 'गिण्हइ' गृह्णाति, 'गिण्डित्ता' गृहीत्वा 'जेणेव' यत्रैव 'उंवरदत्तस्स जक्खस्स' उदुम्बरदत्तस्य यक्षस्य 'जक्खाययणे' यक्षायतनं यक्षस्थानं 'तेणेब' तेनैव 'उवागच्छइ' उपागच्छति, ‘उवागच्छित्ता' उपागल्य 'उंबरदत्तस्स जक्रवस्स' उदुम्बरहत्तस्य यक्षस्य 'आलोए' आलोके दर्शने सति 'ठवित्ता पुक्खरिणी ओगाहेइ' रख कर वह फिर उस पुष्करिणी में स्नान के निमित्त प्रविष्ट हुई। 'ओगाहित्ता' घुस कर उसने 'जलमज्जणं करेइ' उस के जल में डुबकी लगाई । 'करित्ता 'जलकीडं करेइ' डुबकी लगाने के बाद फिर उसने उसमें जलक्रीडा की । 'करित्ता पहाया' जल क्रीडा कर उसने स्नान किया, इस प्रकार जब वह अच्छी तरह स्नान कर चुकी एवं 'कयकोउयमंगलपायच्छित्ता' कौतुक, मंगल और प्रायश्चित कर्म से जब निपट चुकी तव 'उल्लपडसाडिया' गीली साडी पहिरी हुई ही वह 'पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरइ' पुष्करिणी से बाहर निकली । 'पच्चुतरित्ता तं पुप्फ०गिण्हइ' और निकल कर उसने वे तट पर रखे हुए पुष्प आदि लिये। गिण्हित्ता जेणेव उंवरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ' उठा कर वह उस ओर चली कि जिस ओर उस यक्ष का यक्षायतन था। 'ठवित्ता पुक्खदिणी ओगाहेइ' राभान तेरी पछी धुरिमा स्नान ४२१भाटे प्रवेश ध्यो, 'ओगाहित्ता प्रवेश शने तो 'जलमज्जणं करेइ' ते समi sी भारी 'करित्ता जलकीडं करेइ' भने तणे ते पwi crealst , 'करित्ता व्हाया' જલક્રીડા કરીને પછી તેણે સ્નાન કર્યું, આ પ્રમાણે તે જ્યારે સારી રીતે સ્નાન કરી રહી ते पछी 'कयकोउय मंगलपायच्छित्ता' तु, म भने प्रायश्चित्त भथी न्यारे निवृत्त या त्या 'उल्लपडसाडिया' दासी (लित-मेली) साडी पशन त 'पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरइ' शिथी मा नीती 'पच्चुत्तरित्ता तं पुप्फ० गिण्हइ' भने नीजान तो xist ५२ राणे पुष्पो, मारे राज्यु तुते सीधु 'गिण्हित्ता जेणेव उंबरदत्तस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ स शने यक्षना स्थान त२६ साली 'उवागच्छित्ता'. यक्षना स्थानमा पहिचान । तेणे उंवरदत्तस्स.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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