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________________ ४३० विपाकश्रुते सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ णिच्छुभावेइ, णिच्छभावित्ता सुदरिसणं गणियं अभितरए ठावेइ, ठावित्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाइं माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गिहाओ णिच्छुढे समाणे अण्णत्थ कत्थवि सुइं वारइं वा धिई वा अलममाणे जाव विहरइ । तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाइं सुदरिसणाए अंतरं लभेइ, लभित्ता रहस्सियं सुदरिसणाए गिहं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता सुदरिसणाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ ।सू० १०॥ टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से सगडे दारए सयाओ गिहाओ' ततः खलु स शकटो दारकः स्वकाद् गृहात् 'णिच्छूढे समाणे निक्षिप्तः=निःसारितः सन् 'सोहांजणीए णयरीए' शोभाञ्जन्यां नगया 'सिंघाडग तहेव जाव' शृङ्गाटक तथैव यावत्'-अत्रैवं योजना-'शृङ्गाटक-त्रिक चतुष्क-चत्वर-महापथ-पथेषु, द्यूतखलकेषु, वेश्यागृहेषु, पानागारेषु, सुखसुखेन विहरति । ततः खलु स 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं' पश्चात् 'सयाओ गिहाओ णिच्छूढे समाणे' अपने घर से वाहर निकला हुवा 'से सगडे दारए' वह शकट दारक 'साहांजणिए णयरीए' शोभाञ्जनी नगरी में 'सिंघाडग-तहेव जाव सुदरिसणाए गगियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था' शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर और महापथादि में, जुआ खेलने के अड्डों में, वैश्याओं के वाटों में, दारुके पीठों में, निस्संकोच होकर घूमने-फिरने लगा । कोई अभिभावक 'तए णं से ' त्या. 'तए णं' पछी 'सयाओ गिहाओ णिच्छूढे समाणे' पोताना घरमाथा ९२ नी ज्या पछी 'से सगडे दारए' ते २४ ४२४ 'सोहांजणीए णयरीए' wirrit नगरीमा 'सिंघाडग-तहेव जाव सुदरिसणाए गणियाए सद्धि संपलग्गे यावि होत्था' શૃંગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક, ચત્વર અને મહાપથાદ (મોટા રસ્તા) માં, જુગાર રમવાના અડ્ડાઓમાં, વેશ્યાઓના વાડામાં, દારૂઓના પીઠામાં નિસંકેચપણે ફરવા લાગે, કઈ
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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