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________________ ४२८ विपाकश्रुते निष्पन्नं नामधेयं कुरुतः' इति बोध्यम्। 'जम्हा णं' यस्मात् खलु 'अम्हं' अस्माकम् 'इमे दारए' अयं दारकः 'जायमेत्ते चेत्र' जातमात्र एव 'सगडस्स' शकटस्य 'हेट्टा' अधः, 'ठाविए' स्थापितः, 'तम्हाण' तस्मात् खलु 'होउणं' भवतु खलु 'अम्हं एस दारए सगडेनामेणं' अस्माकम् एष दारकः शकटो नाम्ना ' सेसं जहा उज्झियए' शेषं यथा उज्जितका, अस्यैव द्वितीयाध्ययने पञ्चदशमूत्रे यथोज्झितको वर्णितस्तथाऽवशिष्टमेतस्य शकटदारकस्य वर्णनं वोध्यम् । 'सुभद्दे सत्यवाहे' सुभद्रः सार्थवाहः, शकटदारकस्य पितेत्यर्थः, 'लवणसमुद्दे' लवणसमुद्रे 'कालगए' कालगता-मृतः । 'मायावि' माताऽपि शकटदारकस्य जनन्यपि भद्रा सार्थवाहीत्यर्थः, 'कालगया' कालगतामृता । ‘से वि' सोऽपि शकटदारकः 'सयाओ गिहाओ' स्वकाद् गृहात् 'णिच्छूढे' निक्षिप्तः निःसारितः । नगरगोप्तृकैः स दुराचारितया गृहानिष्कासित इत्यर्थः ॥ सू० ९॥ दारक की तरह ही हुई । 'जाव जम्हा णं अम्हं मे दारए' जब पुत्र का ११ वां दिन व्यतीत हो चुका और १२ वां दिन प्रारंभ हुआ तब इस के माता पिता ने इस ख्याल ले कि यह हमारा पुत्र 'जायमेत्ते चेव' उत्पन्न होते ही 'सगडस्म हेट्ठा' गाडी के नीचे 'ठादिए' रखवा दिया गया था 'तम्हा णं इसलिये होउ णं अम्हं एस दारए सगडे नामेणं'. "शकट" इस नाम से इस की प्रसिद्धि होओ। 'सेसं जहा उझियए' बाकी का आगे का इस का वर्णन उज्ज्ञित दारक के समान जान लेना चाहिये । 'सुमद्दे सत्यवाहे लवणसंमुद्दे कालगए, मायावि कालगया' इसका पिता सुभद्र सेठ लवणसमुद्र में डूबकर मर गया। माता भी इसकी मर गई । “से वि सयाओ गिहाओ निच्छूढे ' उस शकट दारक को भी राजपुरुषों ने मिलकर घर से बाहर निकाल दिया । क्यों कि यह दुराचारी हो गया था । 3श 'जाव जम्हाणं अम्हं इमे दारए' मा पुत्रनाम पछी मा२ ११ मे દિવસ પૂરો થઈ ગયે અને બારમા ૧૨ દિવસને પ્રારંભ થયે, ત્યારે તેના માતા-પિતાએ A! प्रभारी विया२ ४ये - अभार पुत्र 'जायमेत्ते चेव' 64-न थतां 'सगडस्स हेट्ठा' डीनी नीये 'ठाविए ' भी वामां भाव्या हतो, 'तम्हा णं' मेटा माटे 'होउ णं अम्हं एस दारए सगडे नामेणं' 'शट' या नामथी सनी प्रसिद्धि थामा, 'सेसं जहा उज्झियए' मानु भागगर्नु मातुं वर्णन Gloria Mना प्रभारी apna 'मुभई सत्यवाहे लवणममुद्दे कालगए मायावि कालगया' तेना पिता सुभद्र 28 aqय सभुभा भी गया भने भ२८३ पाभ्या, तेनी भात! पy भर पाभी 1 ' से वि सयाओ गिहाओ निच्छूटे'
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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