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________________ ... .विपाकश्रुते . 'जाब' यावत् 'णिद्धणं' निधनं 'करेमाणे विहरइ' कुर्वन् विहरति । 'त' तत्-तस्मात् 'सेयं' श्रेयः खलु 'देवाणुपिया' हे देवानुप्रियाः ! 'महावलस्य रण्णो' महाबलस्य राज्ञः 'एयम8' एतमर्थ 'विण्णवित्तए' विज्ञापयितुम् । 'तए ण जाणवया पुरिसा' ततः खलु ते जानपदा: देशनिवासिनः पुरुषा 'एयमटुंः एतमर्थ 'अण्णमण्ण' अन्योन्यं परस्परं. 'पडिसुणेति' अतिशयन्ति= स्वीकुर्वन्ति । 'पडिसुणित्ता' प्रतिश्रुत्य 'महत्थं महार्थ-विशिष्टप्रयोजनकं, 'महग्य' महा=महामूल्यकं 'महरिहं' महार्ह महतां योग्य, 'रायरिह' राजाह-राजयोग्यं 'पाहुडं' प्राभृतम्-उपहारं 'भेट' इति मापायाम् । गिण्हंति' गृह्णन्ति, 'गिण्हित्ता जेणेव पुरिमताले णयरे तेणेव .उवागच्छंति' गृहीत्वा यत्रैव पुरिकरेमाणे विहरइ' अनेक ग्रामों को विध्वंस आदि दुष्कृत्यों से निर्धन कर रहा है तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! इसलिये हम सब की भलाइ अब इसी में है कि हम सब लोग 'एयम महब्बलस्स रण्णो विष्णवित्तए' इस बात को महाबल राजा के निकट पहुँचावें । तए णं जाणवया पुरिसा' इस प्रकार उनपदनिवासी पुरुषों ने 'एयमढे अण्णमण्णं पडिसुणेति' इस बात को एकमत होकर स्वीकार करलिया । 'पडिसुणित्ता महत्थं महग्धं महरिहं रायरिहं पाहुडं गिण्हंति' स्वीकृति मिलते ही राजा के पास . जाने के लिये उन्हों ने विशिष्ट प्रयोजन का सिद्धिकारक महामूल्य . एवं महाह-बडे पुरुषों के योग्य ऐसा प्राभूत जो राजा की भेंट के योग्य था साथ में लिया .! गिहिना जेणेव पुरिमतालणयरे तेणेव उवागच्छंति' और लेकर पुरिमताल नगर की ओर चल दिये उवागच्छित्ता जाव णिद्धणं करेमाणे विहरइ मने गाभानो नाश l दुष्ट माथी निधन श रह्यो छे. 'तं सेयं खलु देवाणुप्पिया!' भेटमा भाटे सीन शत छ माया तमाम भास 'एयम, महव्वलस्स रणो विष्णवित्तए' भी l डीजतने भ AA पासे पाहीये. 'तए णं जाणवया पुरिसा' मा प्रभाव नपहना निवासी पुरुषो 'एयम्€ अण्णमण्णं पडिसुणेति' सोये भजीने २५ पातना स्वी२ ४ी दी। 'पडिसुणित्ता महत्थं महग्धं महरिहं रायरिहं पाहुडं गिण्हंति 'सी मे मनान वी७२ ४ा पछी सनी पासे ४१ भाट तमा विशेष પ્રકારની પ્રજનસિદ્ધિકારક મહામૂલ્યવાન વસ્તુ માટે પુરુષ માટે ચગ્ય એવા રાજાને ५२॥ २५ १२तु ती ते साये सीधी. "गिण्हित्ता जेणेव । पुरिमतालणयरे तेणेव उवागच्छंति' भने साधने युरितमाल नगरनी त२५ यादया 'उवागच्छित्ता
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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