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________________ ३४२ विपाकश्रुते चोरसेनापतेः, 'महया इड्ढिसकारसमुदएणं' महता ऋद्धिसत्कारसमुदयेन ‘णीहरणं' निर्हरणं-स्मशानदेशनयनं 'करेइ' करोति । 'करित्ता' कृत्वा 'वाई' बहूनि 'लोइयाई' लौकिकानि 'मयकिच्चाई' मृतकृत्यानि दानादीनि 'करेइ करोति । 'करित्ता' कृत्वा 'कालेणं' कियता कालेन 'अप्पसोए' अल्पशोकः 'जाए यावि होत्था' जातश्चाप्यभवत् । 'तए णं से' ततः खलु सः 'पंचचोरसयाई' पञ्च चोरशतानि 'अन्नया कयाई अभग्ग्सेणं कुमारं' अन्यदा कदाचित् अभन्नसेनं कुमारं 'सालाडवीए चोरपल्लीए' शालाटव्यां चोरपल्ल्यां 'महयार' महतार 'इड्ढि०' ऋद्धिसत्कारसमुदयेन 'चोरसेणावइत्ताए' चोरसेनापतित्वेन 'अभिसिंचंति' अभिषिञ्चन्ति, 'तए णं से अभग्सेणे कुमारे चोरसेणावई जाए' ततः खलु सोऽभन्नसेनकुमारश्चोरसेनापतिर्जातः, चोरसेनापतेः पदं प्राप्त इत्यर्थः । ततः स कीदृशो जातः ? किं च करोती ?-त्याह-'अहम्मिए' इत्यादि । . . विजय चोरसेनापतिकी 'इढिसकारसमुदएणं णीहरणं करेइ' ऋद्धि एवं सत्कार के साथ सशानयात्रा निकाली 'करित्ता वहुई लोइयाइं मयकिच्चाई करेइ, तदनन्तर अमनसेनने पिता की मृत्युके उस अवसर पर होने वाले और भी अनेक लौकिक कृत्य किये 'करित्ता कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्या' लौकिक कृत्यों के समाप्त होने के बाद क्रमशः अभग्नसेन शोकरहित हो गया । 'तए णं ते पंचचोरसयाई तत्पश्चात् उन पांचसौ चौरोंने । 'अण्णया कयाई किसी एक समय 'अभग्गसेणं कुमारं' उस अभग्नसेन कुमार को सालाडवीए........अभिसिंचंति' शालाटवी नामक चोरपल्ली में गाजे बाजे के साथ चोरों के सेनापतिपद पर स्थापित कर दिया । 'तए णं से अभग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई जाए' इस तरह वह अभग्नसेन कुमार अब चोरों का सेनापति बन गया। ४२१। साथै 'विजयस्त चोरसेणावइस्स' पोताना पिता विन्य योरसेनापतिनी 'इढिसक्कारसमुदएणं णीहरणं करेइ ऋद्धि (सपत्ति) अनुसार सत्२ साफ श्मशानयात्रा ही 'करित्ता वहुई लोइयाई मयकिच्चाई करेइ ते पछी मानसेने पिताना मृत्यु पछीना थता तमाम व्यवहा पाय अर्या. 'करित्ता कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था' बौध्यिामा पूरी या पछी था। समय पछी वे उजवे मनसेन ।२डित थप गयो. 'तए णं से पंचचोरसयाई' ते पछी ते पांयसो यारोये 'अन्नया कयाई' से समय 'अभग्गसेणं कुमार' ते मनसेनने 'सालाडवीए अभिसिंचंति' शालाटवी नामनी या२५८ीमा गारत पास पहु१ मानथी याना सेनापतिप: ५२ स्थापित यो 'तए णं से अभगसेणे कुमारे चोरसेणावई जाए' से प्रभारी ते मनसेन सुमार ७वे याराना
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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