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________________ ३४० विपाकश्रुते ॥ मूलम् ॥ तणं से अभग्गसेणे कुमारे पंचधाई जाव परिवड्ढड् । तर णं से अभग्गसेणे णामं कुमारे उम्सुक्कवालभावे यावि होत्था । अट्ठ दारियाओ जाव अटूओ दाओ, उपिपासाय० भुंजमाणे विहरइ । तर णं से विजय चोरसेणावई अष्णया कयाई कालधभ्णा संजुत्ते । तए णं से अभग्गसेणे कुमारे पंचहि चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इढिसक्कारसमुदएणं णीहरणं करेs, करिता बहूई लोइयाई मयकिचाई करेs, करिता कालेणं अपसोए जाए यावि होत्था । तए णं ते पंच चोरसयाई अन्नया कयाइ अभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपीए सहया र इड्ढि ० चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचति । तए णं से अभग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई जाए, अहम्मिए जाव कप्पायं गेहइ ॥ सू० १२ ॥ टीका. 'तए णं' इत्यादि । तए णं से ततः खलु स ' अभग्ग सेणे कुमारे' अभग्नसेनः कुमारः ‘पंचधाई जात्र परिवड्ढड़' पञ्चधात्रीपरिवृतः यावत् निर्वात- निर्व्याघात- गिरिकन्दरालीनचम्पकपादप इव सुखं सुखेन परिवर्धते । पञ्चधात्री नामान्यत्रैव द्वितीयाध्ययने पञ्चदशसूत्रे प्रोक्तानि । 'तए णं से ' 6 तर णं से अभग्गसेणे कुमारे' इत्यादि । तणं' नामसंस्कार हो चुकने के बाद 'से अभग्ग सेणे कुमारे' वह अभग्नसेन कुमार ' पंचधाई जाव परिवड्ढड़ ' अब पंचधाय माताओं लगा ' तए णं से अभग्ग सेणे से पालित होता हुआ वृद्धिंगत होने त्याहि. " 'तए णं से अभग्ग सेणे कुमारे' ‘तए णं ' नाभसंस्४२ थया पछी 'से अभग्गसेणे कुमारे' ते मलग्नसेन कुमार 'पंचधाई जात्र परिवड्ढड' हवे यांय धायभातामाथी पासित थतो वृद्धि 'तए णं से अभग्ग सेणे णामं कुमारे उम्मुक्कबालभावे यात्रि भवाला
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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