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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ३, अभग्नसेनवर्णनम् ३३९ ते ' आमन्त्रयति, ' आमंत्रित्ता जाव तस्सेव मित्तणाइ० पुरओ' आमन्त्रयित्वा यावत् तस्यैव मित्रज्ञातिप्रभृतेः पुरतः = अग्रे 'एवं वयासी' एवमवादीत् - 'जम्हा णं' यस्मात् खलु 'अम्हे' अस्माकम् . 'इमंसि दारगंसि गन्भगयंसि समाणसि अस्मिन् दारके गर्भगते सति, 'इमेयारूबे दोहले ' अयमेतद्रूपो दोहदः 'पाउब्भूए' प्रादुर्भूतः, 'सेय अभग्गे' स चाभशः 'तम्हा णं' तस्मात् खलु 'होउ' भवतु 'अम्हं दारए' अस्माकं दारकः 'अभग्ग सेणे णामेणं' अभग्नसेनो नाम्ना || सू० ११ ॥ " आमंतित्ता जात्र तस्सेव मित्तणाइ० पुरओ एवं वयासी' आमंत्रित करने के पश्चात् जब वे सब के सब एकत्रित हो चुके, तब उन सब के समक्ष उसने इस प्रकार कहा - ' जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गन्भगयंसि समासि इमेयारूवे दोहले पाउन्भूए से य अभग्गे तम्हा णं होउ अम्हं दारए अभग्ग सेणे णामेणं ' जब यह हमारा बालक अपनी माता के गर्भ में आया था तब इसकी माता को इस२ प्रकार का दोहद अभग्न हुवा इसलिये इसका नाम 'अभमसेन' रहे । भावार्थ - कुछ अधिक दिन सहित नौ माह व्यतीत होने पर स्कंदश्री के पुत्र हुआ । विजय ने इस के जन्म का बडे ही ठाटबाद के साथ उत्सव मनाया । ग्यारह दिन निकलने के बाद बारहवें दिन सर्व प्रकार का भोजन तैयार किया गया और मित्र ज्ञाति आदि परिजनों को आमंत्रित कर जिमाया गया । जीम कर जब सब एक जगह बैठ गये- तब विजय ने उनके समक्ष इस बालक का नाम दोहले के अनुसार अभग्नसेन रखा ॥ सू० ११ ॥ मित्तणाइ पुरओ एवं वयासी' आमंत्रण साध्या पछी क्यारे ते तभाभ उठा थयां त्यारे ते सौना समक्षमां तेथे या प्रमाणे अधु - ' जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गन्भगयंसि समाणंसि इमेयारूवे दोहले पाउन्भूए सेय अभग्गे तम्हा णं होउ अम्ह दारए अभग्ग सेणे णामेण ' આ અમારે માળક પેાતાની માતાના ગર્ભમાં આવ્યેા હતેા, ત્યારે તેની માતાને અમુક અમુક પ્રકારના દાહલા–મનારથ અભગ્ન થયા તે માટે આ ખાળકનું નામ અભગ્નસેન રહે હેાય. ભાવા—થોડા વધારે દિવસ નવ માસ પૂરા થતાં સ્કંદશ્રીને પુત્ર ઉત્પન્ન થયા, વિજયે તેના જન્મના મોટા ઠાઠ-માઠથી ઉત્સવ ઉજન્મ્યા, અગિયાર દિવસ પૂરા થઇને ખારમા દિવસે અનેક પ્રકારનાં ભેજન તૈયાર કરાવ્યાં, અને મિત્ર જ્ઞાતિ આદિ પરિજના સૌને આમંત્રણ આપ્યું ને જમાડયા, જમી રહ્યા પછી સા એક સ્થળે જ્યારે બેઠા હતા ત્યારે વિજયે તેઓના સમક્ષ આ ખાળકનું નામ દેહલા પ્રમાણે भग्नसेन राज्यु ( सू० ११ )
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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