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________________ विपाकचन्द्रिका टीका श्रु० १, अ० ३, अभग्नसेनवर्णनम् । ॥ मूलम् ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी गोयमे जाव रायसग्गं समोगाढे, तत्थ णं बहवे हत्थी जाब पोसइ । तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा पढमंसि चच्चरंसि णिसियाविंति णिसियावित्ता अट्ट चुल्ल पिउए अग्गओ घाएंति, घाइता, कसप्पहारेहिं तालेमाणा २ कल्लुणं काकणिसंसाई खावेंति, खावित्ता रुहिरपाणं च पाएंति १ । ३०७ तयानंतरं च णं दोचंसि चच्चरंसि अटू लहुमाउयाओ अग्गओ घाएंति, घाइता० २, एवं तच्चे० अट्ठ महापिउए० ३, उत्थे० अटू महामाउयाओ ४, पंचमे० पुत्ता ५, छट्टे० सुपहा ६, सत्तमे० जामाउए० ७, अटूसे० धूयाओ ८, नवमे तु ९, दसमे तुइणीओ १०, एगारसे तुयावई ११, बारसमे तुईओ १२, तेरसमे पिउस्सियावई १३, चउसमे पिउस्सि - याओ १४, पण्णरसमे माउस्सियावई १५, सोलसमे माउस्सियाओ १६, सत्तरसमे माउला १७, अट्ठारसमे माउलियाओ १८, एगूणवीस मे अवसेसं मित्तणाइणियगसयण संबंधिपरियणं अग्गओ घाति, घाइता कसप्पहारेहिं तालेमाणार कलणं काकमिसाई खावेंति, रुहिरपाणं च पाएंति ॥ सू० ५ ॥ 5 'परिसा पडिगया रायावि गओ' राजा प्रजा दोनों धर्मदेशना सुनकर अपने२ स्थान पर वापिस गये । ॥ सू० ४ ॥ धर्मना उपदेश साध्यो, 'परिसा पडिगया रायावि गओ' शब्न अन्न भन्ने धर्मને ઉપદેશ સાંભળીને પેાતાના સ્થાનકે પાછા ગયાં. (સુ ૪)
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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