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________________ २९६ विषाकश्रुते छिन्नशैलविषमप्रपातपरिखोपगूढा छिन्ना=विदीर्णः शैलस्तस्य ये विपमप्रपाताः= गर्ताः, त एव परिखाः, ताभिरुपगूढा वेष्टिता, 'अभितरपाणिया' अभ्यन्तरपानीया अभ्यन्तरजलयुक्ता 'मुदुल्लभजलपेरंता' सुदुर्लभजलपर्यन्ता सुदुर्लभम् अतिदुर्लभं जलं पर्यन्ते यस्याः ‘सा तथा, 'अणेगखंडी' अनेकखंडी अनेकाः खण्डया अपहाराणि-गुप्तद्वाराणि यस्याः सा तथा, 'विइयजणदिणिग्गमप्यवेसा' विदितजनदत्तनिर्गमप्रवेशा-विदितानां परिचितानामेव जनानां दत्तः निर्गमः प्रवेशश्च यस्यां सा तथा, पुनः 'मुबहुयस्सवि कुवियस्स जणस्स दुप्पवेसा' सुबहुकस्यापि कुपितस्य कोपाविष्टस्य वैरिण इत्यर्थः, जनस्य दुष्प्रवेशा= दुष्करः प्रवेशो यस्यां सा तथा, 'यावि' चापि होत्था' आसीत् ।। सू०२॥ विसमप्पवायफलिहोदगृहा' इसके आस-पास की छोटी२ टेकरियां खोद डाली गई थों, इससे भूमि में जगह२ खड्ने हो गये थे, इससे देखने वालों को ऐसा ज्ञात होता था कि मानो यह खाई से घिरी हुई हो। 'अभितरपाणिया' चोरपल्ली के भीतर ही पानी का प्रबंध था। पानी लाने के लिये वहां से लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ता था । 'सुदुल्लभजलपेरंता' क्यों कि इसके बाहर बहुत दूर तक पानी का कोई साधन नहीं था। 'अणेगखंडी' इसमें अनेक गुप्तबार भी थे। 'विइयजगदिण्णणिग्यमप्पवेसा' जान पहिचान वाले जन ही इसमें आ-जा सकते थे, अपरिचित नहीं । 'सुबहुयस्सवि कुवियस्स जणस्स दुप्पवेसा यावि होत्था' बहु संख्यक कुपित शत्रुओं को भी इसमें प्रवेश करना मुश्किल था । उनके लिये तो यह सर्वथा दुष्प्रवेश थी । 'छिन्नसेलविसमप्पवायफलिहोवगूढा' तेनी आसपासनी नानी शमा माही नाही હતી, તે કારણથી જમીનપર ઠેકાણે ઠેકાણે ખાડા થઈ ગયા હતા તેથી જેનાર માણસને सेतुं साग तु तो ते मामाथी रायसी डाय. 'अभितरपाणिया' या२५८सानी અંદરજ (ચારોનું ગામ) પાણીનો પ્રબંધ હતું, તેથી, પાણી લાવવા માટે ત્યાંના લોકોને ५९२ ५ नहि 'मुदुल्लमनलपेरंता' २६ तेनायी महा२ मत २ सुधी पी माटे साधन इतुं ना. 'अणेगखंडी' मा मने गुसदार ....... प तi. 'वइयजणदिण्णणिग्गमपदेसा' 7 गुवा-पीछापा वाणी भाशुस , અય તેજ તેમાં આવી જઈ શકતો હતે, અજા માણસ આવી શકતે નહિ. पहुस्सार कुवियस्स जणस्स दुप्पवेसा यावि होत्था' गई मोटी सच्याના કુપિતશત્રુઓને પણ તેમાં પ્રવેશ કરે કઠણ હતે.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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