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________________ वि. टीका, श्रु० १, अ० २, उज्ज्ञितकपूर्वभव गोत्रास कूटग्राह वर्णनम् २५१ पालयित्वा, 'अट्टदुहट्टोवगए' आर्तदुर्घट्टोपगतः आर्तम्-आर्तध्यानं, दुघर्ट-दुर्धर्षे दुर्वारम् उपगतः प्राप्तः, 'कालमासे कालं किच्चा दोचाए पुढवीए' कालमासे कालं कृत्वा द्वितीयस्यां पृथिव्याम् , 'उकोसं' उत्कृष्टम् 'तिसागरोवमटिइएमु' त्रिसागरोपमस्थितिकेषु 'णेरइएसु' नैरयिकेषु 'णेरइयत्ताए' नैरयिकतया ‘उववण्णे' उपपन्न-उत्पन्नः ।। 'तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभदा. भारिया' ततः खलु सा विजयमित्रस्य सार्थवाहस्य सुभद्रा. भार्या 'जाइणिंदुया यावि' जातिनिन्दुका .: चाऽपि जातेजन्मत आरभ्य, निन्दुका-निन्दुरेव निन्दुका-मृतवत्सा चापि, जन्मकालादेव मृतवत्सात्वदोषयुक्ताचापीत्यर्थः; 'होत्था' आसीत्, तस्याः 'जाया जाया जाता जाता दारगा' दारकाः= ये ये शिशवः समुत्पन्नास्ते ते, 'विणिहायमावज्जति' विनिघातमापद्यन्ते-मृता भवन्तीत्यर्थः ॥ सू० १३ ॥ पांचसौ (५००) वर्ष की अपनी उत्कृष्ट आयु भोगकर, ‘अट्टदुइटोवगए कालमासे कालं किच्चा' मृत्यु के अवसर पर आर्तध्यान से मरा और भरकर, 'दोच्चाए पुढबीए उक्कोसं तिसागरोवमटिइएमु णेरइएमु णेरइयत्ताए उववण्णे' दूसरी पृथिवी कि जहाँ उत्कृष्ट तीनसागर की स्थिति है ऐसे नरक में नारकीकी पर्याय से उत्पन्न हुआ । 'तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभदा भारिया जाइणिदुया यावि होत्था' उस समय विजयमित्र सार्थवाह की भार्या सुभद्रा सार्थवाही थी, जो जातिनिंदुका' थी, अर्थात्- 'जाया जाया दारगा विणिहायमावज्जंति' जिसके बच्चे होते ही मर जाते थे। वर्षी पातानी (कृष्ट मायुष्य नावाने अट्ठदुहट्टोवगए कालमासे कालं किच्चा' भ२४ समये मात ध्यानथी भ२९५ पाभीन, 'दोच्चाए पुढवीए उकोमं तिसागरावमहिइएस जेरइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे' मा पृथ्वीमा ल्यi S४°ट सारनी स्थिति छ सेवा न२४मा नलीनी पर्यायथी 64rन थयो. 'तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा भारिया जाइजिंदुया यानि होत्या' વિજયમિત્ર સાર્થવાહની ભાર્યા સુભદ્રા સાર્થવાહી હતી. જે જાતિબિંદુક હતી, એટલે કે “जाया जाया दारगा विणिहायमावज्जति' ने च्या-0m मृत्यु पामता ता.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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