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________________ २५० विपाकश्रुते पुढवाए पुढate उक्कोसं तिसागरोवमट्टिइएस णेरइएस णेरइयत्ताए उववण्णे । तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा भारिया जाइणिंदुया यावि होत्था तीए जाया २ दारगा विणिहायसावजंति ॥ सू० १३ ॥ टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से गोत्तासे कूडग्गा हे' ततः खलु स गोत्रासः कूटग्राहः 'एयकम्मे' एतत्कर्मा - गवादिहिंसामद्यपानादिक्रियाकारको, 'एयपहाणे' एतत्प्रधानः = गवादिहिंसामद्यपानादितत्परः, 'एयविज्जे' एतद्विद्यः = हिंसादिपापबुद्धिः, 'एयसमायारे' एतत्समाचारः = गवादिहिंसा विविधमद्यपानाऽऽचरणशीलः, 'सुबहुं पात्रकम्मं' सुबहु पापकर्म 'समज्जिणित्ता समय = उपार्जितं कृत्वा, 'पंचवाससयाई' पञ्चवर्षशतानि 'परमाउं' परमायुः - उत्कृष्टमायुः 'पाठित्ता' 'तए णं से गोत्तासे' इत्यादि । 'तए णं' इस प्रकार से गोत्तासे कूडग्गा वह गोत्रास कूटग्राह, 'एयकम्मे ' कि जिसका गो-आदि की हिंसा और मद्यपान आदि क्रिया करना यही एकमात्र कर्तव्य था 'एयप्पहाणे' इन्हीं क्रियाओं के करने में जो रातदिन तत्पर रहा करता था; 'एयविज्जे ' यही एक जिसके जीवन की विद्या थी और 'एयसमायारे' यही गोआदिकों की हिंसा करना और मदिरा के नशे में धुत रहना ही जिसका एक आचरण बन चुका था, 'सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता' अनेकविध पापकर्मों का उपार्जन कर 'पंचवाससयाई परमाउं पालइत्ता ' " 'तए णं से गोत्तासे ' इत्याहि. 'तए णं या प्रमाणे ' से गोत्तासे कूडग्गाहे ' ते गोत्रास ड्रेटयार्ड, 'एकम्मे ' नेनु गाय माहिती हिंसा भने मद्यपान अहि हिया ४२वी मेल शोऽमात्र उर्त्तव्य हेतु; 'एयपहाणे' या १२वामां ने रात्रि-द्विवस तैयार रहेत! तो, 'एयविज्जे 'भेना लवननी : विद्या हुती. भने 'एयसमाया रे' તે ગાય આદિ પશુઓની હિંસા કરવી અને મદિરાપાનના નશામાં ચકચૂર રહેવું पेट नेनुं सःयस्य तु; 'सुबहु पात्रकम्मं समज्जिणित्ता' भने४विध पाय ४भेलु उपार्जन (उभाए|l) ने 'पंचवाससयाई परमाउँ पालइत्ता ૧ ૫૦૦ પાંચસા ,
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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