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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १,अ० २, उज्ज्ञितकपूर्वभवगोत्रासकटग्राहवर्णनम् २३७ तए णं से भोमे कडग्गाहे अद्धरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सण्णद्धजाव-पहरणे साओ गिहाओ जिग्गच्छइ, जिग्गच्छित्ता हथिणाउरं मझं सज्झेणं जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहणं जयरगोरूवाणं जाव वसाण य अप्पेगइयाणं ऊहे छिंदव, अप्पेगइयाणं कंबलए छिदइ, अप्पेगइयाणं अषणमण्णाई अंगोवंगाइं वियंगेइ, वियंगित्ता जेणेष सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उप्पलाए कूडग्गाहिणीए उकणेइ । तए णं सा उप्पला भारिया तेहिं बहूहि गोमंसेहि सोल्लेहिं सुरं च ६ आसाएमाणी ४, तं दोहलं विणेइ । तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी संपुण्णदोहला संमाणिय दोहला विच्छिधणदोहला संपरुणदोहला तं गब्भं सुहसुहेणं परिवहइ ॥१० ९॥ . टीका 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं से भीमे कूडग्गाहे' ततः खलु स भीमः कूटग्राहः 'अद्भरनकालसमयंसि' अर्धरात्रिकालसमये, 'एगे एका-एकाकीअन्यजनसहायरहित इत्यर्थः, 'अबीए' अद्वितीयः-धर्माभावाद् यस्य द्वितीयः भीमने अपनी पत्नी को प्रिय वचनों द्वारा संतुष्ट किया ॥सू० ८ ॥ 'तए णं से' इत्यादि। 'तए णं से भीमे डग्गाहे उस को समझा बुझा देने के बाद वह भीमकूटग्राह 'अद्वरत्तकालसमयंसि' अर्धरात्रि के समय 'एगे' अकेला ही-किसी अन्यजन की सहायता के विना ही, 'अबीए' धर्म પ્રકારે ભીમકૂટગ્રાહે પિતાની પત્નીને પ્રિયવચને વડે સંતુષ્ટ કરી. (સૂ૦ ૮) 'तए णे से याहि. __ 'तए णं से भीमे कटग्गाहे तर समावी-गाध मापीन पछी ते भीम ३८याई 'अद्वरत्नकालसमयंसि' म रात्रिना समयने विष 'एगे' मे दो- 35 ___old भाणुसनी सहायता विना 'अबीए'धमनी भावनायी २हित सण्णद्धजाव पहरणे
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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