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________________ २२२ . : . . . . . . . विपाकश्रुते समएणं इहेब जंबुद्दी वे दी वे भारहे वासे हथिणाउरे णामं णयरे होत्था' तस्मिन् काले तस्मिन् समये इहैव जम्बूद्वीपे भारते वर्षे हस्तिनापुरंनाम नगरमासीत् । तत् कीदृश? मित्याह-'रिद्ध०' इत्यादि। ऋद्धस्तिमितसमृद्धऋद्धम्-नभःस्पशिबहुलप्रासादयुक्तं बहुलजनसंकुलं च, स्तिमितं-स्वपरचक्रभय रहितं, समृद्धम् -धनधान्यादिपरिपूर्णम् । 'तत्थ णं हथिणाउरे. णयरे' तत्र खलु हस्तिनापुरे नगरे 'सुणंदे णामं राया' सुनन्दे नाम राजा होत्था' आसीत् । स कीदृशः ?-इत्याह--- 'महया' इत्यादि । 'महयाहिमवंतमहंतमलयमंदरमहिंदसारे' महाहिमवन्महामलय-. मन्दरमहेन्द्रसारः, अम्य व्याख्या ज्ञाताम्मूत्रस्य प्रथमाध्ययने श्रेणिकभूपवर्णनेऽ ' एवं खलु' इत्यादि । गौतम के पूर्वोक्त वचनों को सुनकर प्रभुने कहा- 'गोयमा' हे गौतम सुनो; एवं खलु तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर इस प्रकार है-'तेणं कालेणं तेणं समएणं' उस काल और उस समय में 'इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे हथिणाउरे णामं णयरे होत्था' इस मध्य-जम्बूदीप के भरतक्षेत्र में एक हस्तिनापुर नाम का नगर था यह नगर 'रिद्ध०' 'ऋद्ध'-नभस्तलस्पशी अनेक प्रासादों से युक्त एवं बहुलजनों से व्याप्त, 'स्तिमित'-स्वचक्र एवं परचक के भय से रहित, और 'समृद्ध'धनधान्यादि से परिपूर्ण था। 'तत्थ णं हत्थियाउरे णयरे सुणंदे णाम राया होत्था' उस हस्तिनापुर में एक सुनंद नामका राजा रहता था। 'महयाहिमवंतमहंतमलयमंदरमहिंदसारे' यह महाहिमवान् महामलय, मन्दर, एवं महेन्द्र के जैसे विशिष्ट सार से युक्त था । (इन पदों ‘एवं खलु' त्या. गौतमना पूरित वयना सामजी प्रसुमे युगोयमा' है गौतम ! सांभणा; 'एवं खलु' तमारा प्रश्नाने उत्तर 24 प्रमाणे छे-'तेणं कालेणं तेणं समएणं' ते ॥ भने ते अभयने विषे 'इहेब जंबूहीवे दीवे भारहे वासे हत्यिणाउरे णामं णयरे होत्या' मा मध्य दीपना भरतक्षेत्रमा मे हस्तिनाधुर नामर्नु ना२ . मा ना२ 'रिद्ध०' -भतशी (मशन २५ ४२ तेवा या-या) गने भसोथी युद्धत मने घell ar पस्तीथी १२५२, स्तिमित સ્વચક્ર અને પરચકના ભયથી રહિત, તથા સમૃદ્ધ ધનધાન્યાદિકથી પરિપૂર્ણ હતું. 'तत्य णं हथिणाउरे णयरे मुणंदे णामं राया होत्था' ते स्तिनापुरमा मे सुन नामना २० २उता ता. 'महयांहिमवंतमहंतमलयमंदरमहिंदसारे ते मभिवान, મામલય, મન્દર એવા મહેન્દ્રના જેવા વિશિષ્ટ સારથી યુક્ત હતા. (આ પદની
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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