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________________ १७२ ... विपाकश्रुते मियापुत्ते णं दारए' मृगापुत्रः खलु दारकः 'इओ' इतः अस्माद् भवात् , 'कालमासे कालं किया' कालमासे-मरणावसरे कालं कृत्वा, 'कहिं गमिहिई कुत्र गमिष्यति ?, 'कहिं उववजिहि कुत्रोत्पत्स्यते ?, भगवानाह-'गोयमा इत्यादि । 'गोयमा! हे गौतम ! 'मियापुत्ते दारए मृगापुत्रो दारकः 'वत्तीस वासाई द्वात्रिंशद् वर्षाणि, 'परमाउयं पालत्ता' परमायुष्कं पालयित्वा 'कालमासे कालं किचा कालमासे-मरणसमये प्राप्ते कालं कृत्वा मरणं प्राप्य 'इहेव जंत्रुही वे दीवे भारहे वासे इहैव जंबुद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे 'वेयड्ढगिरिपायमूले वैताव्यगिरिपाद्मूले चेतान्यनामकपर्वतस्याधोभागसमीपे 'सीहकुलंसि सिंहकुले 'सीहत्ताए' सिंहतया 'पञ्चायाहि प्रत्यायास्यति-उत्पत्स्यते, 'से णं तत्थ सीहो भविस्सई स खलु तत्र सिंहो भविष्यति, कीशोऽसो भविष्यती ? त्याह-'अहम्मिए अधार्मिकः 'जाव साहसिए यावत् साहसिकः, अत्र यावमृगापुत्र का समस्त पूर्वभव का वृत्तान्त जानकर पुनः प्रभु से यह पूछा कि-'भंत' हे भदन्त ! 'मियापुत्ते णं दारए इओ कालमासे कालं किवा कहिं गमिडि मृगापुत्र यालक इस भव में काल के अवसर में काल कर कहां जायगा ? 'कहिं उववजिहिड्' कहां पर उत्पन्न होगा? । प्रत्युत्तर में प्रभुने कहा-'गोयमा! हे गौतम! 'मियापुत्ते द्वारए बत्तीसं वासाई परमाउयं पालत्ता कालमासे कालं किंवा इहेव जंबुद्धीवे दीवे भारहे वासे यह सृगापुत्र बालक बत्तीस वर्ष की उत्कृष्ट आयु का पालन कर स्थिति के क्षय होने पर मर कर इस मध्य जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में 'वेयड्डगिरिपायमूळे वैतात्य पर्वत की तलहटी में 'सीहकुलंसि' सिंह के कुलमें 'सीहत्ताए पञ्चायाहि सिंह की पर्याय से उत्पन्न होगा। 'से णं तत्य सीहो भविस्सइ अहम्मिए जाब साहसिए' भवन वृत्त.तने ctel ने दी प्रमुने मा प्रभारी छ्यु :-'भंते !' हे महन्त ! मियापुत्ते णं दारए इओ कालमासे कालं किवा कहि गमिहि भापत्र 14:३४ मा भर ५ भान यसो ?. 'कहिं उववन्जिहिइ 'श्यां पन्न यशे? प्रत्युत्तरमा प्रमुझे यु-गोयमा ! गौतम ! 'मियापुत्ते दारए बत्तीसंवासाई परमाउयं पालत्ता कालमासे कालं किचा इहेव जंबुद्दीचे दीवे भारहे वासे' આ મૃગાપુત્ર બાળક ત્રીશ વર્ષના ઉત્કૃષ્ટ આયુષ્યનું પાલન કરીને સ્થિતિનો ક્ષય થતાં भरा पानीने. मा भयमुदायना नर-क्षेत्रमा 'वेयड्हगिरिपायमले' वैताव्य पनी नटीभी, सीहकुलसि नि! युगमi, 'सीहत्ताए पचायादिइ' हिनी यथा पन्न यथे, ‘से णं तत्य सीहो भविस्सइ अहम्मिए जाव साहसिए'
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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