SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, जन्मान्धपुरुषवर्णनम्... ६५ ....... ॥ मूलम् ॥ .:. : ... . .. - तत्थ णं मियागामे णयरे एगे जाइअंधे पुरिसे परिवसइ । से णं एगेणं सचक्खुएणं पुरिसेणं पुरओ दंडएणं पगड्ढिजमाणे पगढिज्जमाणे फुट्टहडाहडसीसे मच्छियाचडगरपहकरेणं अणिजमाणमग्गे मियागामे णयरे गिहे गिहे कालुण्णवडियाए वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ ॥ सू० ५॥ टीका'तत्थ णं' इत्यादि । 'तत्थ णं मियागामे णयरे' तत्र खलु मृगाग्रामे नगरे, 'एगे' एकः 'जाइअंधे' जात्यन्धः जन्मकालतोऽन्धः 'पुरिसे परिवसइ' पुरुषः परिवसति । ‘से णं एगेणं' स खलु एकेन 'सचक्खुएणं पुरिसेणं' सचक्षुष्केण पुरुषेण 'पुरओ दंडएणं' पुरतो दण्डकेन 'पगइडिज्जमाणे पगड्डिजमाणे' प्रकृष्यमाणः प्रकृष्यमाणः नीयमानो नीयमानः, 'फुट्टहडाहडसीसे' स्फुटितात्यर्थशीर्षः स्फुटित-स्फुटितकेशम् अत्यर्थम् , 'हडाहड' इति अत्यर्थवाचको देशीयशब्दः; शीर्ष-शिरो यस्य स तथा, 'मच्छियाचडगरपहकरेणं' मक्षिकाचटकरप्रकरण-मक्षिकाणां चटकरः = प्रधानो-विस्तरवान् यः 'तत्थ णं' इत्यादि। - 'तत्थ णं मियागामे णयरे उसी मृगाग्राम नगर में 'एगे जाइअंधे' एक जन्म से अंधा कोई पुरुष रहता था। ‘से णं एगेणं सचक्खुएणं' वह दूसरे किसी एक नेत्रयुक्त पुरुष की सहायता से 'पुरओ दंडएणं पगड्ढिज्जमाणे२' यष्टि-लकड़ी के सहारे चलता था । चलते चलते 'फुट्टहडाहडसीसे' इसके शिर के बाल बिलकुल अस्तव्यस्त-बिखरे हुए-थे और 'मच्छियाचडगरपहकरेणं अण्णिजमाणमग्गे' मक्खियों का 'तत्थ णं' या. 'तत्थ णं मियागामे णयरे' त भृगाम नगरने विष 'एगे जाइअंधे', मे मथी सांधणे व पुरुष २हेतो तो. 'से णं एगेणं सचक्खुएणं' भी नेत्रवाणा पुरुषनी सहायताथा 'पुरओ दंडएणं पगढिज्जमाणे२१ डीन माधारे यात तi, यासतi Radi फुट्टहडाहडसीसे तना मायान माद सभ विमा हता, मने 'मच्छियाचडगरपहकरेणं अणिज्जमाणमग्गे' भाभीमानी
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy