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________________ १६८ उत्तराध्ययनसूत्रे छाया-दर्शनज्ञानचारित्रे, तपो विनये सत्य-समिति-गुप्तिषु । यः क्रियामावरुचिः, स खलु क्रियारुचि न म ॥ २५ ॥ टीका-'दसणनाणचरित्ते' इत्यादि । शब्दार्थः प्रसिद्धः । दर्शनाद्याचारानुष्ठाने यस्य क्रियातो भावतश्च रुचिरस्ति स खलु क्रियारुचिर्नाम-क्रियारुचिरितिसन्तव्यः ॥ २५ ॥ नवम-संक्षेपरुचिमाहमूलम्-अणभिग्गहियकुदिट्टी, संखेवरुईत्ति होई नायव्यो । __ अविसारओ पर्वयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥२६॥ छाया--अनभिगृहीतकुदृष्टिः संक्षेपरुचिरिति भवति ज्ञातव्यः । अविशारदः प्रवचने, अनभिगृहीतश्च शेषेषु ॥ २६ ॥ टीका--'अणभिग्गहियकुदिट्ठी' इत्यादि । यस्तु-अनभिगृहितकुदृष्टिः अनभिगृहीता-अनङ्गीकृता, कुदृष्टिः-सौगतमतादिरूपा, येन स तथा, प्रवचने सर्वज्ञशासने, अविशारदः अल्पनिपुणः, शेषेषु अब आठवें क्रिया रूचि सम्यक्त्वको कहते हैं- 'दंसग' इत्यादि । अन्वयार्थ-(दसणनाणचरित्ते-दर्शनज्ञानचारित्रे)दर्शन, ज्ञान चारित्र में, (तविणए सच्चसमिइयुत्तीस्लु-तपो विनये सत्यसमितिगुप्तिषु ) तप, बिनय, सत्य, समिति एवं गुप्तियों में (जो-यः) जिस जीवको (किरिया भावरुई-क्रिया भावरुचिः) क्रिया और भावसे रुचि होती है (सो खलु किरियारुईनाम-स खलु क्रिया रुचिर्नाम) वह निश्चय क्रियारुचि सम्यक्त्व है ॥ २५॥ अब नौवें संक्षेपरुचि सम्यक्त्वको कहते हैं-'अगभिग्गहिय०' इत्यादि। ( अगभिगहिय कुदिट्ठी-अनभिगृहीतकुदृष्टिः) सौगतादिक मत डवे मामा जिया३५ी सभ्यत्पने ४ छ-"दसण" त्याही सन्वयार्थ-दसणनाणचरित्ते-दर्शनज्ञानचारित्रे शन, ज्ञान, यात्रिभो, तवविणए सच्च समिइगुत्तिसु-तपो विनये सत्य समितिगुप्तिषु त५, विनय, सत्य समितिमन शुशियामा जो-यः पन किरिया भावरुई-क्रियाभावरुचिः ठिया मन माथी ३यि थाय छे ते सा रहलु किरियारुई नाम-स खलु क्रियारुचिर्नाम त निश्चय लिया३यि सभ्यरत छ. ॥ २५ ॥ डर नवमा सय ३थि सभ्यपने ४ छ..-"अणभिग्गरिय०" त्याही अन्याय-अणभिग्गहिय कुदिट्ठी-अनभिगृहीत कुदृष्टिः सौगता भत३५
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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