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________________ ८५२ उत्तराध्ययनसूत्रे समासेन=संक्षेपेण, व्याख्याताः । विस्तरतस्तु एषां त्रयाणां बहुतरा भेदाः सन्तीति भावः। अतस्तु-अतः परम् , त्रिविधान् सान अनुपूर्वशः अनुक्रमेण वक्ष्यामि।।१०७॥ श्री सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामिनं प्रत्याहमूलम्-तेऊ वोऊ ये बोधवा, उराला य तसा तहा। इच्चेएँ तसा तिविहीं, तेसिं भेएँ सैंणेह में" ॥१०॥ छाया-तेजांसि वायवश्च बोद्धव्याः, उदाराश्च त्रसास्तो । इत्येते त्रसास्त्रिविधाः, तेषां भेदान् शृणुत मे ॥ १०८ ॥ टीका-'तेऊ वाऊ य' इत्यादि। हे जम्बूः ! तेजांसि अग्नयः, वायवश्व, इमे उभये एकेन्द्रिया, तथा-उदाराः -एकेन्द्रियापेक्षया प्रायः स्थूलाः, द्वीन्द्रियादय इत्यर्थः । त्रसा:-त्रस्यन्ति-चलन्ति त्रिविधाः) तीन प्रकार के (थावरा-स्थावराः) स्थावर जीवोंका (समासेण वियाहिया-समासेन व्याख्याताः) यह संक्षेप से ही कथन किया है। कारण कि विस्तार से यदि इसका कथन किया जाता तो इनके अनेक भेद प्रभेदोंका भी यहां कथन किया गया होता। परन्तु ऐसा नहीं किया है अतः इससे यही समझना चाहिये कि यह कथन यहां इनका संक्षेप को लेकर ही किया गया है। (इत्तोउ-अतस्तु) अब इसके बाद (तिविहे तुले अणुपुब्वसा-त्रिविधान् ब्रसान्-अनुपूर्वशः) विविध त्रस जीवोंका में क्रमशः कथन करता हूं ॥ १०७ ॥ 'तेउ' इत्यादि। अन्वयार्थ इस गाथाद्वारा श्री सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीसे कहते हैं कि हे जंबू!-(तेउ वाउ य-तेजांसि वायवश्च) तेजस्काय और वायुकाय ये दोनों एकेद्रिय जीव ( उराला-उदाराः ) एकेन्द्रिय जीवोंकी अपेक्षा स्थावराः स्था१२ खानु समासेण वियाहिया-समासेन व्याख्याता सोपथी वर्णन કરેલ છે કારણ કે, વિસ્તારથી જો એનું વર્ણન કરવામાં આવે તે એના અનેક ભેદ પ્રભેદનું પણું વર્ણન કરવામાં આવ્યું હતું. પરંતુ એવું કરવામાં આવેલ નથી. આથી એ સમજવું જોઈએ કે, આ કથન એના સંક્ષેપને લઈને १ ४२ छे इत्तोउ-अतस्तु वे माना पछी तिविहे तसे अणुपुव्वसो-त्रिविधान त्रसान् अनुपूर्वश. त्रिविध त्रस सवाई मश: पणुन ४३ छु ॥ १०७॥ " ते उ"छत्याहि । અન્વયાર્થ–આ ગાથા દ્વારા શ્રી સુધર્માસ્વામી જબૂસ્વામીને કહે છે है, न्यू! तेऊ वाऊय-तेजांसि वायवश्च ते०४२४ाय भने वायु४ाय में मन
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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