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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ स्त्रीमोक्षनिरूपणम् ननु स्त्रीषु मुक्तिकारणानामसद्भावात् तत्राय हेतु स्त उच्यते-उक्तहेतोरसिद्धत्वं वदसि, तत् किं स्त्रीय किमुत निर्माणस्थानाधपसिद्धत्वेन २, किंचा मुक्तिसाध तत्र यदि तावत् पुरुषेभ्योऽपकृष्टत्वेन स्त्रीषु मुक्तिका तर्हि इदं ब्रूहि-त्वदङ्गीकृतं पुरुषेभ्योऽपकृष्टत्वं स्त्रीषु किं भी मुक्ति-प्राप्तिके योग्य हैं। जहां पर जिलकी : वहां पर उसके कारणोंकी विकलता रहत शीलयङकुरकी संभवता नहीं है, अतः वहाँ एः विकलता है। परन्तु विवक्षित स्त्रियां ऐसी नह सब कारणोंका सद्भाव है अतः वे मुक्तिके र फिर भी ऐसा ही कहा जावे कि स्त्रियो मुक्ति हैं अतः उनमें इस हेतुके असद्भावसे हेतु, ७ ऐसा कहना ली ठीक नहीं है। कारण कि हमा पूछना है कि आप जो स्त्रियों में इस हेतुकी आ सो किस कारणले ? क्या वे पुरुषों की अपेक्षा निर्वाणरूप स्थानकी अप्रसिद्धि है इसलिये, या नहीं है इसलिये ?। यदि ऐसा कहा जाय कि हीन हैं इसलिये उनमें मुक्तिके कारणोंका सद्धा पर हम यह पूछते हैं कि आप जिन स्त्रियों નથી. આથી એ સ્થળે એના કારણેની પણ વિકળત એવી નથી. એમનામાં તે મુક્તિના સઘળા કારણે મુકિતને યોગ્ય છે. જો કે આની સામે ફરીથી ? કે, સ્ત્રિઓમાં મુકિતના કારણેની અસદુભાવતા છે અસદુભાવ હોવાના કારણે આ સિદ્ધતા આવે છે, ઠીક નથી, કારણ કે આની સામે અમારું એ સ્ત્રિોમાં એ હેતની અસિદ્ધતા પ્રગટ કરી રહ્યા છે પુરૂષનો અપેક્ષાએ હિન છે? એ કારણથી, અથવા નિવ
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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