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________________ ७२७ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ स्पर्शभङ्गनिरूपणम् स्पर्शपरिणतानां स्कन्धानां परमाणोश्च भङ्गान् बोधयितुं प्रथमं कर्कशस्पर्श भङ्गानाह-- मूलम्-फासओ कडे जे उ, संइए से डवणओ। गंधओ रैलओ चेवे, भैइए संठाणओ बि ये ॥३५॥ छाया--स्पर्शतः कर्कशो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः । गन्धतो रसतश्चैव, माज्य संस्थांनतोऽपि च ।। ३५॥ टीका-'फालओ ककडे जे उ' इत्यादि---- यस्तु स्कन्धादिः, स्पर्शतः, कर्कशः कर्कशस्पर्शवान स तु, वर्णतः भाज्या, वर्णतः) वर्णकी अपेक्षा माज्य होता है। इसी तरह (गंधओ फालओ वि य संठाणओ भइए-गंधतः स्पर्शतः अपि संस्थानतः आज्यः) बह गंध, स्पर्श तथा सस्थानकी अपेक्षा माज्य पालना चाहिये। अर्थात् जो स्कंध आदि रसकी अपेक्षा मधुर रसवाला होता है वह वर्णकी अपेक्षा नियमित वर्णवाला तथा नियमित अधवाला तथा नियमित स्पर्शवाला और नियमित संस्थानवाला नहीं होता है। वह कोई न कोई वर्ण, गंध, स्पर्श तथा संस्थानवाला होता है। इस प्रकार मधुरके ली बीस भंग पूर्ववत् जानना चाहिये। इस प्रकार पांच रसोंके सब मिलकर सौभंग होते हैं।॥३४॥ ___ अब स्पर्श परिणत स्कन्धोंके तथा परमाणुके अंगोंको कहते हुए सूत्रकार प्रथम कर्कश स्पशके संग कहते हैं-'फासओ' इत्यादि। .. अन्वयार्थ (जे उ-यः तु) जो स्कंध आदि (फालओ-स्पर्शतः) स्पर्श परिणामसे (ककडे-कर्कशः) कर्कश स्पर्शवाला होता है (से-सः) वह ellorय 14 2. मा प्रभारी ये गंधओ फासओ वि य संठाणओ भइए-गंधतः स्पर्शतः अपि च संस्थानतः भाज्यः ५, २५ तथा संस्थाननी भा३४ मान्य માનવા જોઈએ. અર્થાત જે સ્કંધ આદિ રસની અપેક્ષાએ મધુર રસવાળા હોય છે તે વર્ણની અપેક્ષા નિયમિત વર્ણવાલા તથા નિયમિત ગંધવાળા તથા નિયમિત સ્પર્શવાળા અને નિયમિત સંસ્થાનવાળા દેતા નથી, તે કઈને કઈ વર્ણ, ગંધ, સ્પર્શ તથા સંસ્થાનવાળા હોય છે. આ પ્રમાણે મધુરના પણ વીસ ભંગ પૂર્વવત્ જાણવા જોઈએ, આ પાંચ રસના સઘળા મળીને સો ભંગ થાય છે. એ ૩૪ છે હવે સ્પર્શ પરિણત કંધે તયા પરમાણુના ભંગને કહેતાં સૂત્રકાર प्रथम ४४२ २५श ना लगने मतावे छ-" फासओ" त्यादि पयाथ-जे उ-यः तु २१ मा फासओ-स्पर्शतः २५श परिणामयी ककडे-कर्कशः ४४श स्पशवाणा होय छे से-सः ते वण्णओ-वर्णतः वयुनी
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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