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________________ ७२६ उत्तराध्ययनसूत्रे टीका-रलओ अंबिले जे उ' इत्यादि-- व्याख्या पूर्ववत् । अम्लस्याऽपि प्राग्वद् विंशतिर्भङ्गा भवन्तीति भावः ॥ ३३ ॥ मधुरस्य भङ्गानाह-- मूलम्-रसओ मरए जे ऊँ, भईए से ऊ वाणओ। गंधओ फालंओ चेब, भैइए संठाणओ वि थे ॥३४॥ छाया--रसतो मधुरो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः । ___गन्धतः स्पर्शस्तश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ३४ ॥ टीका-'रसओ बहुरए जे उ' इत्यादि-- व्याख्या पूर्ववत् । मधुरस्यापि विंशतिरेव भङ्गा पूर्ववत् । एवं च रस पञ्चकसंमेलने भङ्गशतं (१००) लब्धम् ॥ ३४ ।। अब अम्ल (खट्टे) रसके भंग कहते है-'रसओ अंबिले' इत्यादि। अन्वयार्थ--(जे उ-य तु) जो पौद्गलिक स्कंध आदि (रसओरसतः) रस परिणामसे परिणत होनेकी अपेक्षा (अंबिले-अम्लः) अम्लखट्टे रसवाला होता है (से-सः) वह (वण्णओ भइए-वर्णतः भाज्यः) वर्णकी अपेक्षा याज्य होता है। इसी तरह (गंधओ फासओ वि य संठाणओ भइए-गंधतः, स्पर्शतः अपि च संस्थानतश्च साज्यः) गंध, स्पर्श तथा संस्थानकी अपेक्षा ली आज्य जानना चाहिये। यहाँ अम्ल रसके बीस भंग होते है॥३३॥ अब मधुर रसके अग कहते है-'रसओ महरए' इत्यादि। अन्वयार्थ--(जे-यः) जो स्कन्ध आदि (रसओ-रसत) रस परिणामसे (महरए-मधुरः) मधुररसवाला होता है (से-सः) वह (वण्णओ मन्त (माटर) रसना छ-" रसओ अबिले " याह. भ-क्याथ-जे-यः २ पौविध २४५ मा रसओ-रसतः सपरिणत . डापानी सणे अंबिले-अम्लः मन-माटर २सा डाय छे. से-सः त सओ भइए-वर्णतः भाज्यः पनी अपेक्षा मान्य हाय छे. या प्रमाण गंधओ फासओ वि य संठाणओ भइए-गंधतः स्पर्शतः अपि च संस्थानतश्च भाज्यः ગંધ, સ્પર્શ અને સંસ્થાનની અપેક્ષાએ પણ ભાજ્ય જાણવા જોઈએ. આ આસ્વ રસના પણ વીસ ભંગ હોય છે. જે ૩૩ છે डवे मधुर २सन लगने ४९ छे—“ रसओ महुरए " या. मन्वयार्थ:-जे-यः २ २४५ माहि रसओ-रसतः २८ परिक्षामथी - मधुर २सवाणा होय छे. से-सः से वण्णओ-वर्णतः व नी मपेक्षा
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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