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________________ प्रियदर्शिनी टीका २० ३४ स्थितिवारनिरूपणम् प्रकृतमुपसंहरन्नाह-- मूलम्-एसा खलु लेसाणं, ओहेग ठिई वणिया होई। चैउसु दि गईखें एंतो, लेलाणाठि तु दोच्छामि॥४०॥ छाया--एषा खलु लेश्यानाम् , ओधेन रिपतिस्तु वर्णिता भवति । ___ चतसृष्वपि गतिषु अतः, लेग्यानां स्थितिं तु वक्ष्यामि ॥ ४० ॥ टीका-" एला स्खलु लेसाणं" इत्यादि-- एपा खलु लेश्यानां स्थितिः, ओधेन तु सामान्येनैव, गतिविशेषाविवक्षया वर्णिता भवति । अतः परं-सामान्येल स्थितिवर्णनानन्तरं चतसृष्वपि गतिषु नरकगत्यादिषु प्रत्येकं लेश्यानां स्थिति तु वक्ष्यामि करिष्यामि ॥ ४० ॥ शुकलेश्या की स्थिति इस प्रकार है--'मुहुत्तद्धं तु' इत्यादि। अन्वयार्थ (सुक्क लेलाए-शुक्ललेश्यायाः ) शुल्क लेश्या की (जहन्ना टिई-जयन्यास्थितिः) जघन्यस्थिन्नि (मुहत्तई होई-बहुत्ताहां भवनि)अन्तमुहर्त कालकी है तथा (उचकोला ठिई मुत्तहिया तेत्तिसं-उत्कृष्टा स्थितिः मुहूर्त्ताधिकाल त्रयस्त्रिंशत् सागरान ज्ञातव्या अधति) उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त अधिक तेतील लागरोपमप्रमाण है ।। ३९ ॥ लेश्याओं का सामान्यवर्णन करके अब चारों गतियों में लेग्याओं की स्थिति का वर्णन करते हुए श्री धर्मा स्वामी जम्बूरवाली से कहते हैं-'एसा' इत्यादि। ____ अन्वयार्थ-(एसा लेसाणं ठिई ओहेण वणिया होई-एपा लेश्याना स्थितिःओवेन तु वर्णिता अवलि ) यह लेश्याओं की स्थिति सामान्य ले शुस वेश्या- स्थिति २t t२नी-" मुहुत्तब्ध तु" त्या ! मन्वयार्थ—सुझलेसाए-शुक्ललेश्यायाः शुस देश्यानी जहन्ना ठिई-जघन्या स्थितिः सचन्य रिश्रति मुहत्तद्ध होइ-मुहर्ताद्धां भवति मन्तभुत बनी छ. तथा उकोसाठिई मुहुत्तहिया तेत्तिसं सागरा नायचा-होई उत्कृष्टा स्थितिः मुहूर्ताधिकान् यत्रिशत् सागरान् ज्ञातव्या भवति अष्ट स्थिति सन्तति અધિક તેત્રીસ સાગરોપમ પ્રમાણ છે. ૩૯ હેશ્યાઓનું સામાન્ય વર્ણન કરીને હવે ચારે ગતિમાં તેઓની स्थितिनु पनि ४२i श्री सुधारमा समस्यामीन -"एसा" या ! गया---एसा लेसा ठिई ओहेण वणिया होई-एपा लेझ्यानां स्थितिः सोधेन तु वर्णिता भवति मा श्यामानी यति सामान्य दरात वामां मावी
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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