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________________ - १४ उत्तराध्ययनसूत्रे तत्क्षयात्कं गुणं प्राप्नोति इत्याहमूलम् सव्वं तओ जाणई पासई ये, अमोहणो होई निरंतराँए । अणासवे झाणसमाहिजुत्तो, आउखए मुक्खेमुवेई सुद्धे ॥१०९॥ छाया-सर्व ततो जानाति पश्यति च, अमोहनो भवति निरन्तरायः। अनास्रवः ध्यानसमाधियुक्तः, आयुक्षये मोक्षमुपैति शुद्धः ॥१०९॥ टीका-'सव्वं तओ' इत्यादि । तता=ज्ञानावरणादिक्षयात् जीवः-सर्व जानाति-विशेषरूपत्वेनावगच्छति । तथा-पश्यति च सामान्यरूपेण प्रत्यक्षीकरोति, च इति समुच्चयाऽर्थः, एवञ्च समुचयस्य भेदविषयत्वात् , ज्ञानदर्शनयोः पृथगुपयोगरूपत्वं सूचितम् , तथा-अमोहनःमोहरहितो भवति, तथा-निरन्तरायः निष्क्रान्तोऽन्तरायो यस्मात् स तथा, तथा -अनास्रवः कर्मबन्धजनकहिसादि रूपानवरहितो भवति, तथा-ध्यानसमाधियुक्तः ज्ञानावरणीयादि चार घातीकों के नाश होने पर किस गुण की प्राप्ति होती है ? सो कहते हैं-'सच' इत्यादि । ___ अन्वयार्थ-(तओ-ततः) ज्ञानावरण आदि कर्मों के क्षय के बाद (जीव-जीवः) जीव अनंत दर्शन एवं अनंतज्ञान की प्राप्ति हो जाने के कारण (सव्वं जाणइ पासइ य-सर्व जानाति पश्यति च ) लमस्त पदार्थों जानने लगता है और सामान्य रूप से सब पदार्थो को देखने लगता है। ज्ञानोपयोग में पदार्थो का विशेषरूप से बोध होता है तथा दर्शनोपयोग में पदार्थों का सामान्यरूप में वोध होता है इस तरह ये दोनों उपयोग पृथकर हैं। (अमोहणो निरंतराए होइ-अमोहनो निरन्तरायः भवति) इस समय जीव मोहरहित एवं अन्तराय कर्मरहित होता है तथा જ્ઞાનાવરણીયાદિ ચાર ઘાતી કર્મોને નાશ થવાથી કયા ગુણની પ્રાપ્તિ थाय छ १ ते ४९ छ-" सव्वं" छत्याहि । मन्वयार्थ तओ-ततः ज्ञानाव२९या ना क्षय पछी जीव-जीवः 9 सनत शन मने मनत शाननी प्राप्ति 25 or41 सव्वं जाणइ पासइय-सर्व जानाति पश्यति च समस्त पहायान तवा दोन पर સામાન્ય રૂપથી સઘળા પદાર્થોને જોવા માંડે છે. જ્ઞાનેપગમાં પદાર્થોને વિશેષ રૂપથી બોધ થાય છે તથા દર્શન ઉપગમાં પદાર્થોને સામાન્ય રૂપમાં બેધ थाय छ, म श स भन्ने उपयो! PARL मा छे, अमोहणो निरंतराउ होइ निरन्तरायः भवति मा समये 4 माहित न्मने मातराय
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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