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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे अवमाशनानां अवमौदरिकतपः समाराधकानां, दमितेन्द्रियाणां चित्तं रागशत्रु नै धर्षयति-न एराजेतुं शक्नोति क इव : औपधैः पराजितो व्याधिरिव । यौषधपराभूतो व्याधिः शरीरं घर्षयति तद्वित्यर्थः ॥ १२ ॥ विविक्तवसत्यभावे दोषमाह-- मूलम्-जहा विरालावसहस्त सूले, न सूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मंझे, न बंभारिस्त खेमो निवासो॥१३॥ तानाम् ) स्त्री पशु पण्डक आदि से रहित बसति में रहनेरूप अवस्थान से यन्त्रित हुए तथा ( ओमासणाणं-अवमाशनानाम् ) अवमौदर्यादिक तपश्चर्या में निरत ( दमिइंदियाणं-दमितेन्द्रियाणाम् ) इन्द्रियों को दमन करने में तत्पर ऐसे संयमीजनों के (चित्त-चित्तम् ) अन्तःकरण को ( रागसत्तू न धरिसेइ-रागशत्रुः न धर्षयति ) रागरूपी शत्रुकिसी तरह से भी पराजित नहीं कर सकता है । (ओसहेहिं पराइओ वाहिरिवऔषधैः पराजितः व्याधिः इव) जिस प्रकार औषधियों द्वारा नष्ट की गई व्याधि शरीर पर आक्रमण नहीं कर सकती हैं। भावार्थ-जिस प्रकार औषधियों द्वारा नष्ट हुआ रोग शरीर पर किसी भी तरह का अपना प्रभाव नहीं दिखला सकता उसी प्रकार विविक्तशय्यासनवाले तथा औवमौदरि आदि तप करनेवाले एवं इन्द्रियों को अपने वश में रखने वाले साधुओं के चित्त को रागरूपी शत्रु विक्षिप्त नहीं बना सकता है ॥ १२ ॥ પશ. પંડક આદિથી રહીત વસતીમાં રહેવારૂપ અવસ્થાનથી વંત્રિત થયેલ तथा ओमासणाणं-अवमाशनानाम् ममोहादि तपश्चर्यामा निरत दमि इंदियाणं -दमितेन्द्रियाणाम् इन्द्रियानु भन ४२वाभां त५२ वा संयमी बनाना चित्तंचिचम् मत ४२णुने रागसत्तू न धरिसेइ-राग शत्रुः न धर्ष यति रा३पी शत्रु सरशते ५२॥ ४॥ शता नथी, ओसहेहिं पराइओ वाहिरिव-औषधैः पराजितः व्याधिः इव २ प्रमाणे मौषधियो द्वारा भटानामा मावस शश શરીર ઉપર આક્રમણ કરી શકતું નથી. ભાવાર્થ-જે રીતે ઔષધીયાથી શરીરમાંના રોગને નષ્ટ કરવામાં આવ્યા પછી તેને કોઈ પણ પ્રકારને પ્રભાવ દેખાતો નથી. એ જ પ્રમાણે વિવિક્ત શાસનવાળા તથા અવમૌદારિ આદિ તપ કરવાવાળા અને ઈદ્રિને પોતાના વશમાં રાખવાવાળા સાધુઓના ચિત્તમાં રાગરૂપી શત્રુ પિતાનું સ્થાન જમાવી શ નથી ૧રા
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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