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________________ ८०४ उत्तरायणसूत्रे मूलम् — देवा भवित्तोण पुरेभवामि, केईच्या एगविमार्णवासी । "पुरे पुराणे इसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलो गरम्मे ॥१॥ छाया - देवा भृत्वा पुराभवे, केचिच्च्युता एकविमानवासिनः । पुरा पुराणे इपुकार नाम्नि स्याते समृद्धे मुरळीकरम्ये ॥ १ ॥ टीका- ' देवा ' इत्यादि । केचित् जीवा' पुराभवे = पूर्वजन्मनि एक विमाननासिनः - एकस्मिन् विमाने वस्तु शीला ये ते तथा, सौधर्म देवलोकान्तर्गत पद्मगुल्मविमानवासिन इत्यर्थः, देवाभूत्वा तत्रत्यभोगान् परिभुज्य, ततम्च्युताः सुरत्रोकरम्ये देवलोकान्मनोरमे, समृद्धे धनधान्यपरिपूर्णे पुराणे माचीने जत एन रयाते जगत्मसिद्धे इपुकारनाम्निपुरे समुत्पन्नाः ॥ १ ॥ तत्रपुरे कस्मिन् कुले समुत्पन्नाः किं कृतवन्तथ ? इत्याह-मूलम्— सकम्मैसेसेण पुराकऍण, कुलेसु दग्गेसु य ते' पसूया । निर्विर्षण संसारभयाज हाय, जिणिमंग्ग सरणं पवण्णा ॥२॥ अन्वयार्थ - ( पुरे भवमि - पुराभवे) पूर्वभवमे (गविमाणवासी- एकविमान वासिनः ) सौधर्मदेवलोकातर्गत पद्मगुल्म नामके एक विमान में (देवाभवित्ताण - देवा भूत्वा ) देवकी पर्याय मे थे । वहाके भोगोको भोगकर फिर वहांसे (केई - केपि) कोई अर्थात् उह देव (चुधा - च्युताः) चवे और (सुरलो गरम्मे-सुरलोकरम्थे) देवलोक जैसे मनोरम तथा (समिध्धे-समृद्धे) धनधान्यसे परिपूर्ण ऐसे ( इसुधार नामे पुरे - इपुकार नाम्नि पुरे) इषुकार नामके पुरमे जो (पुराणे- पुराणे) पुराना एव (खाए - ख्याते) प्रसिद्ध शहर था वहा उत्पन्न हुए ॥ १ ॥ अन्वयार्थ -- छमे वो पुरेभवमि - पुराभवे पूर्व लवभा एग विमाणवासीएक विमानवासिन सौधर्म देवयान्नी महर पद्मशुम नामना से विमानभा देवा भवित्ताण - देवा भूत्वा देवनी पर्यायभा देता त्याना लोगोने लोगवीने समिध्वेसमृध्ये श्री त्याथी केई - केवि मे छमे हेषु चुया - च्युता भवीने देवो नेवा भनोरम तथा सुरलोगरम्मे-सुरलोकरम्ये धनधान्यथी परिपूर्य सेवा इसुयार नामे पुरे - इपुकारनाम्नि पुरे घुमार नामना पुराणे- पुराणे पुरा તેમજ खाए- ख्याते પ્રસિદ્ધ એવા શહેરમા ઉત્પન્ન થયા ॥ ૧ ॥
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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