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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० १ गा० १ विनयोपदेश सह सम्बन्धः । भावसयोग. शुभभावैः सहात्मनः सम्बन्धः, तस्मात् सविधसयोगाद् विनमुक्तस्य-विप्रयुक्तस्य, अनित्याशरणादिद्वादशभावनाभिः सयोगस्य फल ससारपरिभ्रमणादिरूप विज्ञाय सयोग परित्यक्तात इत्यर्थः । सयोगो हि मृगतृष्णापद् भ्रमोत्पादकः, कुगतिसाधकः, पिवकतन्मूलने मत्तगजराजोपमः, अमन्दात्मानन्दरसशोपणे प्रचण्डमार्तण्डसमः, युतचारिनधर्मारामदावानलः, सयानवारिदविक्षेपणे शैलशिखरानिलः । सयोगस्य पियरियोगजनकत्वेन दारुणदुःखोत्पादकतयाऽपि परिहार्यता, क्तस्य) सर्वथा रहित (अणगारस्स-अनगारस्य) अनगार (भिक्खुणो -भिक्षोः)-साधु के (विणय-विनय) विनय को मै (आणुपुब्धि-आनुपूर्वी) शास्त्रोक्तपद्धति के अनुसार(पाउकरिस्सामि-प्रादुष्करिष्यामि) प्रकट-क गा। अत. हे जम्बू! तुम सर उसे (मे-मत्तः) मुझ से (सुणे-शृणुत ) सुनो॥१॥ भावार्थ-सयोग शब्द का अर्थ सवध है। द्रव्यसयोग और भावसयोग के भेद से यह सयोग दो प्रकार का है। पूर्वसयोग और पश्चात्सयोग के भेद से द्रव्यसयोग भी दो तरह का बतलाया गया है। माता पिता आदि के साथ जो जन्म से सवध है वह पूर्वसयोग है। श्वशुर अदि के साथ पीछे से हुआ सवध पश्चात्सयोग है। अशुभ भावो के साथ आत्मा का सबध रहता है वह भावसयोग है। इस सयोग का सर्वथा परित्याग वही आत्मा कर सकता है जो अनित्य २डित (अणगारस्स-अनगारस्य) मा२ (भिक्खुणो-भिक्षो) साधुन। (विणयविनय) विनयने (आणुपुवि-आनुपूर्वी) शास्त्रोत पति नुसार (पाउक रिस्सा मि-ग्रादुष्करियामि) प्रगट रीग टोन्मू। तमे गधा येन (मे-मत्त ) भारी पामेथी (सुणेह-श्रुणुत) साम - ભાવાર્થ-સોગ શબ્દનો અર્થ સબધ છે દ્રવ્યોગ અને ભાવસ યોગના ભેદથી આ સોગ બે પ્રકારે છેપૂર્વસગ અને પશ્ચાત્સગના ભેદથી દ્રવ્ય સગ પણ બે રીતને બતાવેલ છે માતા પિતા વગેરેની સાથે જે જન્મને સબધ છે, તે પૂર્વગ છે શ્વશુર વગેરેની સાથે પછીથી થયેલ સબ ધ એ પશ્ચાત્સયોગ છે અશુભ ભાવોની સાથે આત્માને જે સ બ ધ રહે છે એ ભાવસાગ છે આ સગને સર્વથા પરિત્યાગ એ જ આત્મા કરી શકે છે.
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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