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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे । हिन्दीभापानुवाद । उत्सराध्यनसूत्र पर सस्कृत टीका करने के परले टीकाकार सर्वप्रथम अन्तिम तीर्थकर श्रीवर्धमान जिनेन्द्र को नमस्कार करते हैं'भवजलधि०' इत्यादि। (भवजलधिनिमज्जजीवरक्षककृत्य) अपार ससाररूप समुद्र मे डूबते हुए जीवों की रक्षा करना ही जिनका कार्य या, (विमलहितवचोभिर्दर्शितात्मैकसृत्यम् ) जिन्होंने अपनी निर्मल हितावह देशनाओ के द्वारा भव्यात्माओ को आत्मकल्याण का मार्ग प्रदर्शित किया, तथा (सुर-नर-मुनिवृन्दैर्वन्द्यमानाङ्गिपद्मम् ) जिनका चरणकमल सुर-नर और मुनियो के समूह से वन्द्यमान था, ऐसे (सकल गुणनिधान) सभी गुणो के-समस्त क्षायिक गुणो के-निधानस्वरूप (वर्धमान) चरम तीर्थकर श्रीवर्धमानस्वामी को (प्रणौमि) मनवचन काया से मै नमस्कार करता हूँ ॥१॥ भावार्थ-वर्धमान प्रभुने इस अपार ससाररूपी समुद्र में डूबते हुए जीवों को आत्म उद्धार का मार्ग बतलाया, उस मार्ग से ગુજરાતીભાવાનુવાદ ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર ઉપર સસ્કૃત ટીકા કરતા પહેલા ટીકાકાર સર્વ પ્રથમ मन्तिम तीर्थ ४२ श्री मान लनेन्द्रने नम२४.२ ४२ छ -'भवजलधि०' त्यादि भवजलधिनिमज्जज्जीवरक्षककृत्य ~~2440२ स सा२३५ समुद्रमा मता वानी २६॥ ४२वानु मनु य तु, विमलहितवचोभिर्दर्शितात्मेकसृत्यम्જેમણે પિતાની નિર્મલ હિતાવહ દેશનાઓથી ભવ્યાત્માઓના આત્મ याएनभार्ग समन्यो , तथा सुर-नर-मुनि-वृन्दैवन्द्यमानाधिपमम् --मना य२३ उमर सुर-१२ मने भुनियाना समूडने वहनीय हुता, मेवा सकलगुणनिधान-या गुणेना-समस्त क्षायि शुशाना-निहान-१३५, वर्धमानयम तीर्थ ४२ श्री मान स्वाभीन, प्रणौमि-मन चयन याथी नभ२४१२ ભાવાર્થ-વર્ધમાન પ્રભુએ આ અપાર સંસારરૂપી સમુદ્રમાં ડુબતા જીવોને આત્મ ઉદ્ધારને માર્ગ બતાવ્યું. તે માર્ગથી તેમની રક્ષા થઈ આથી ભગવાનને
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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