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________________ ५४० उत्तराध्ययनले नाय चैतन्याख्यो गुणो भूतानां भवितुमईति । तस्मान् पारिशेप्याच्चैतन्यमात्मनो धर्म इति सिद्धान्तोऽनुसरणीयः। ___ यदप्युक्तम्-आत्मनः प्रत्यक्षतो नुपलभ्यमानत्वादिति तदप्यसदेव, सर्वां स्वात्मा स्वप्रत्यक्ष एव, ज्ञानादीनामात्मगुणानां प्रत्यक्षानुभवात् घटमह जानामीस्या धनुभवस्य सर्वसिद्धनात् । यया घटादीनां रूपादयः प्रत्यक्षतयोपलभ्यन्ते, वयाऽऽत्मनोऽपि ज्ञानमुखादयो गुणा कस्य न सन्ति प्रत्यक्षानुभनगोचराः, किंतु सर्वेपामागा लद्धाना प्रत्यक्षानुभवगोचरा. सत्येर। उक्तच-'आत्मप्रत्यक्ष आत्माऽयम्' इत्यादि। चैतन्य है यह किसी प्रकार सिद्ध नहीं होता है इसलिये यह चैतन्यगुण पारिशेष्यात् (अनुमानविशेप से) आस्मा का ही एक धर्म है। इसी से आत्माका सद्भाव ख्यापित होता है यह सिद्धान्त अनुसणीय है। तथा और भी जो ऐसा कहा है कि "आरमा की प्रत्यक्ष से अनुः पलब्धि होने की वजह से सत्ता ज्ञात नही होती है " सो ऐसा कहना भी ठीक नही है क्यों कि प्रत्येक ससारी जीवों को अपनी २ आत्मा का स्वानुभव से प्रत्यक्ष होता है, कारण कि उसके ज्ञानादिक गुणों का प्रत्यक्ष अनुभव होता रहता है। "मैं घट को जानता हू" यह अनुभव तो सब को ही होता है। जिस प्रकार घटादिकों के रूपादिक गुण प्रत्यक्ष से उपलब्ध हैं उसी प्रकार आत्मा के भी ज्ञानादिक गुण समस्त जीवो को प्रत्यक्ष से अनुभवित हो रहे हैं। ऐसा कोई भी जीव नही है चाहे वह बालक हो चाहे वृद्ध कि जिसे इन का प्रत्यक्ष से अनुभव न होता हो । कहा भी है-"आत्मप्रत्यक्ष आत्माऽयम्" इत्यादि । અનુમાન વિશેષથી આત્માને જ એક ધર્મ છે આથી જ આત્માને સદ્દભાવ સ્થાપિત થાય છે આ સિદ્ધાત અનુસરણીય છે તેમ વધુમાં એમ પણ કહ્યું છે કે, “આત્માની પ્રત્યક્ષશ્રી અનુપલબ્ધિ હોવાના કારણે સત્તા જ્ઞાત થતી નથી ? તેનુ કહેવુ પણ ઠીક નથી કમ પ્રત્યેક સ સારી જીવોને પોત પોતાના આત્માના સ્વાનુભવથી પ્રત્યક્ષ થાય છે કારણ કે, તેને જ્ઞાનાદિક ગુણનો પ્રત્યક્ષ અનુભવ થતો રહે છે ” હું ઘટને જાણુ છુ ” આ અનુભવ તે દરેકને થાય છે જેવી રીતે ઘટાદિકના તથા રૂપાદિકના ગુણ પ્રત્યક્ષથી ઉપલબ્ધ છે જેવી રીતે આત્માને પણ જ્ઞાનાદિક ગુણ સમસ્ત છવાને પ્રત્યક્ષથી અનુભવિત થઈ રહે છે એ કોઈ પણ જીવ નથી, ભલે તે બાળક मया वृद्ध डायरेनेत प्रत्यक्षथी मनुस न त। डाय झुछ है-"आत्म प्रत्यक्ष आत्माऽयम् " त्याने मानी ५२ सेम डेवामा आवे,
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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