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________________ २८९ प्रियदर्शिनी टीका अ० २ गा० ४ पिपासापरीपहजये पानभेदा (१) उस्सेइम-उत्स्वेदिम-पिष्टोत्स्पेदनार्थमुदकम् । रोटिकाया कृताया येनो दकेन पिष्टस्थाल्यादिधारन क्रियते तदित्यर्थः । (२) ससेइम-ससेफिम-उत्कालिताना पत्रशाकादीनामनपगतविक्तादिरसाप सारणार्थ शैत्यार्थ वा येनोदकेन धावन क्रियते, वदित्यर्थः । (३) चाउलोदग-तण्डुलोदक-तण्डुलधावनोदकम् । (४) तिलोदग-तिलोदक-तिलधावनोदकम् । (५) तुसोदग-तुपोदक-तुपधावनोदकम् । (६) जवोदग-यवोदक-यवधावनोदकम् , अब 'यव' इत्युपलक्षण तेन ब्रीद्या. दिधामनोदकस्यापि ग्रहणम् । पर भी साधु को चाहिये कि वह कभी भी सचित्त अनेपणीय जल का उपयोग न करे । प्रासुक जल इक्कीस २१ प्रकार का होता है यह बात आचारागसूत्र में द्वितीय श्रुतस्कन्ध के नवम अध्ययन में कही गई है१ उस्सेइम-भोजन बन चुकने के बाद आटे की थाली आदिका धोवन। २ ससेइम-शाकपत्रादिकों के उबालने पर उनका कडापन आदि निकालने के लिये अथवा उन्हें ठडे करने के लिये जो जल ऊपर से डाला जाता है वह । ३ चाउलोदक-चावलों का पोवन । ४ तिलोदग-तिलों का धोवन । ५ तुसोदग-तुपों को धोने से निकला हुआ जल। ६ जवोदग-जौ आदि का धोया हुआ जल। જળનો ઉપયોગ કદી પણ ન કરવું જોઈએ પ્રાસુક જળ એકવીસ પ્રકારનું હોય છે આ વાત આચારાગસૂત્રમ બીજા ભૃતરત ધના નવમાં અધ્યયનમાં કહેવામાં આવેલ છે उस्सेइम- सारन मनी युज्या पछी माटानी थाणी विशेरेनु पापा रासेइम- २ ॥४ पत्राने पाथी तेना ४७१ प वगैरेन al માટે અથવા તેને ઠ ડા કરાવવા માટે જે પાણી ઉપરથી નાખ વામાં આવે છે તે चाउलोग- ૩ ચેખાનુ ધાવણ तिलोदग ૪ તલનું દેવ तुसोदग ૫ તુને ધેવાથી નિકળેલ પાણી जवोदग- 4 माहिद घोता निल पाणी उ०३७
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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