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________________ TATTY ર૪છે उत्तराध्ययन गुरोः शिक्षापचने कुशिष्यस्य दुर्भाग्नामाहमूलम्-खड्डुया में' चवेडा में, अकोला ये वहीं ये मे" | ___ केल्लाणमणुसासतो, पौवदिहिर्ति मन्नई ॥३८॥ छाया-खड्डका मे चपेटा मे, जामोशाय धाय में। कल्याणमनुशासन, पापदृष्टिरिति मन्यते ॥ ३८ ॥ टीका-'खड्ड्या ' इत्यादि-- कल्याण लोकद्वयहितम्, अनुशासत् = शिक्षयन् गुरु. कुशिष्येण पापदृष्टिःपापा-पापमयी दृष्टिर्यस्य स तथा, इति मन्यते-जय गुरुमम हिंसकोऽस्तीति मन्यते । यतोऽनेन-मे-मम, खड्डुका:-टफरा आचाता दीयन्तेऽनेनेति शेपः। तथा मेमम, चपेटाः करवलापाता दीयन्ते । च-पुनः, आक्रोशापरुपभाषणानि, च-पुनः, मेन्मम, वधा. दण्डादिधाताः क्रियन्ते । जो कुशिष्य होता है उसे जय गुरु महाराज शिक्षा देते हैं तब उसकी क्या भावना होती है यह वात इस गाथा द्वारा प्रकट की जाती है 'खड्डया' इत्यादि. अन्वयार्थ-अविनीत शिष्य (कल्लाणमणुसासतो-कल्याण अनुशासत्) उभयलोकसवधी हित शिक्षा देने वाले गुरु महाराज को (पावदिट्ठी-पापदृष्टिः) यह पापदृष्टि वाले मेरे घातक हैं (त्ति-इति) इस प्रकार समझता है । क्यों कि वह गुरु महाराज की शिक्षा सम्बन्धी बातों को इस प्रकार मानता है कि (खड्डया मे चवेडा मे अकोसा य वहा य मेंखड्डका मे चपेटा मे आक्रोशाश्च वधाश्च मे) ये मेरे लिये आघातस्वरूप हैं थप्पडस्वरूप हैं, परुषभाषण-गाली-स्वरूप हैं, प्रहारस्वरूप है। જે કુશિષ્ય હોય છે એને ગુરુ મહારાજ શિક્ષા આપે છે, ત્યારે તેની કેવી ભાવના હોય છે. તે વાત આ ગાથા દ્વારા પ્રગટ કરવામાં આવે છે વહુવારુઈત્યાદિ स-क्या-मविनीत शिष्य कल्लाणमणसासतो कल्याण अनुशासत् उलय as समधी हितशिक्षा देवापाशुरुमडासनाने पावदिदी-पापदृष्टि से पाप દષ્ટીવાળા મારા ઘાતક છે ત્તિ શુતિ એ પ્રકારના સમજે છે કેમ કે, ગુરુ મહારાજના शिक्षा समधी वातान से सारे भान छ है, खडडया मे चवेडा मे अक्कोसा य पहा य मे-खड्डुका मे चपेटा में आक्रोशाश्व वधाच मे मा भा२। भाटे माघात સવરૂપ છે, થપ્પડ સ્વરૂપ છે, પ્રહાર સ્વરૂપ છે
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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