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________________ - निरयावलिकासूत्रे ... मूलम् - (- निरयावलियाउवंगे णं : एगो सुयक्खंधो, पंच, वग्गा, पंचसु दिवसेसु उस्सिति, तत्थ चउसु वग्गेसु दस दस उद्देगा, पंचमग्गे वारस उद्देगा | ३५० " :: ॥ निरयावलियासुत्तं समत्तं ॥ 157 92 छाया - निरयावलकोपाने खलु एकः श्रुतस्कन्धः, पञ्च वर्गाः, पञ्चसु दिवसे उद्दिश्यन्ते, तत्र चतुर्षु वर्णेषु दश दश उद्देशकाः, पञ्चमवर्गे द्वादश देशकाः ॥ ॥ इति निरयावलिकासूत्रं समाप्तम् ॥ सुधर्मा स्वामी कहते हैं हे जम्ब ! भगवान के समीप मैने जैसा सुना पैसा तुम्हें कहा ॥ ३ ॥ A | वारहवाँ अध्ययन समाप्त हुआ ।. | वृष्णि दशा नामक पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ । निरयावलिका नामक श्रुतस्कन्ध समाप्त,, ( उपाङ्ग समाप्त हुए ) निरयावलिका उपाङ्गमें एक श्रुतस्कन्ध है, पाँच वर्ग हैं, पांच दिनोंमें इसका उपदेश दिया गया है। इसके चार वर्गोंमें दस-दस उद्देश हैं, पांचवें वर्ग में बारह उद्देश हैं । इति निरयावलिका सूत्र समाप्त.. સુધર્માં સ્વામી કહે છેઃ— हे अभ्यू ! भगवाननी पासे में, नेवु सांलज्यु मे तने हुँ-धु., (3).'' બારમું અધ્યયન સમાપ્ત વૃષ્ણુિદશા નામના પાંચમા વર્ગ સમાપ્ત નિયાવલિકા,નામને શ્રૃતકન્ય સમાપ્ત ( उपांग सभाप्त ). - નિમ્યાવલિકા ઉપાગમાં એક શ્રુતસ્ક્રુન્ધ છે પાચ વર્ગ છે. પાંચ દિવસમાં गाना- उथहेश भाषाया है. माना यार, वर्ज भी इश-देश उद्देशो है, पांयभा वर्गभां ખાર ઉદ્દેશો છે ઇતિ નિરયાવલિકા સૂત્ર સમાપ્ત.
SR No.009351
Book TitleNirayavalikasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages437
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size22 MB
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