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________________ - - निरयावलिकाम गमा प्रयमं याद बहरपयं व कुमारं प्रपयामि । तं दूतं सत्करोति सम्मानपनि भनिमिर्जानि । नतः मनु म दतो यारन् कृणिकम्य गडो० वर्धयित्वा एवमवादीनपेटको गना आमापयनि-यथा चैत्र बल देवानुपिय ! कुणिको राजा श्रेणि यः पुनः चलनाया देन्या आत्मजः यावद् वैद्दत्यं कुमारं पयामि, जाति जन च्यामिन ! चेटको गजा सेचनकं गन्धहस्तिनम् अष्टादनन . बदललयं कुमारं नो अपयनि । दन माग गजा पूणिर की ऐसी विज्ञप्ति सुनकर राजा चेटपने नाले म प्रकार फष्टना प्रारम्भ किया-हे देवानुपिय ! जिस गर गजा कृणिर श्रेणिक गजाका पुत्र है, चेल्लना देवीका आत्मज है और मंग दौरित उनी प्रकार कुमार बहरल्य भी श्रेणिक राजा पन-देना देवीका आत्मज और मेरा दौहिन है, राजा श्रेणिने अपनी जोविनावधामें ही सेचनक गन्धहाथी और अठारण बीमाया दार कुमार वैल्यको प्रेमसे दिया है अतः उनपर राज. एका अधिकार नही है नो भी यदि राजा फणिक हाथी और र लेना चाहता है तो उसे चाहिये कि गाय गप्ट और जनपद का यामा माग कुमार चैत्यको बंद । मा करने पर मैं हाथी और पाक मारलाको भेज दगा । सा कहकर राजा घेटकने उस नागा सादर मन्तार किया और उसे विमजित कर दिया । वर दारशालानगरीरे चलकर गाजा कणिकर पास आया ओर हाय ८ . . . . 11111 २०६५it - 12 तने भी 12 ::. :- 1. 4 दाने enc ry P.en y४ .: " . .. .. ... . .. .. र पे य पन्न . . . . . : ...... .? . . ..... '. .in . . .. . . . . य... म . अधि. nil. ly.it न पy anty . ...... ... ... ५६ की Eno fit fast
SR No.009351
Book TitleNirayavalikasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages437
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size22 MB
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