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________________ मन्दी कारेऽस्मिन् दृष्टिवादे प्रथमः प्रकारः कीदृशः? इति पृच्छति-अथ किं तत् परिकर्म? इति । उत्तरयति-परिकर्मभूत्रादि ग्रहण-योग्यतासंपादनम् अवस्थितस्य वस्तुनो गुणाधान वा, तद्धेतुत्वात् शास्त्रमपि परिकर्मेत्युच्यते, तद्धि सप्तविधं प्रज्ञप्तम् , तद्यथासिद्धश्रेणिकापरिकर्म १, मनुष्यश्रेणिका परिकर्म २, पृष्टश्रेणिका परिकर्म ३, अवगाहनश्रेणिका परिकम ४, उपसंपादनश्रेणिका परिकर्म ५, विप्रहाणश्रेणिका परिकर्म ६, च्युताच्युतश्रेणिका परिकर्म च७ इति । ____ अथ किं तत् सिद्धश्रेणिका परिकर्म ? इति प्रश्नः । उत्तरयति-सिद्धश्रेणिका परिकर्म चतुर्दशविधं प्रज्ञप्तम् , तद्यथा-मातृकापदानि १, एकाथिकपदानि-एकसमस्त द्दष्टिवाद अंग प्रायः विच्छिन्न हो चुका है फिर भी जो कुछ उपलब्ध हुआ है उस पर कुछ लिखा जाता है शिष्य पूछता है-हे भदन्त ! परिकर्म का क्या स्वरूप है ? उत्तर-सूत्रादिकों के ग्रहण करने की योग्यता का संपादन करना, अथवा अवस्थित वस्तु का गुणधान करना इसका नाम परिकर्म है। इस परिकम का हेतु होने से शास्त्र भी परिकम शब्द से व्यवहृत हो गया है। यह परिकमें सात प्रकार का कहा है, जैसे-सिद्धश्रेणि का परिकम १, मनुष्यश्रेणि का परिकर्म २, पृष्टश्रेणि का परिकर्म ३, अवगाढश्रेणि का परिकर्म ४, उपसंपादनश्रेणि का परिकर्म ५, विप्रहाणश्रेणि का परिकर्म ६ तथा च्युताच्युतश्रेणि का परिकर्म ७। अब शिष्य पूछता है-हे भदन्त ! सिद्धश्रेणिका परिकर्म का क्या स्वरूप है? ___उत्तर-सिद्धश्रेणि का परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है, वे વિચ્છિન્ન થઈ ગયું છે તે પણ જે કંઈ ઉપલબ્ધ થયું છે. તે વિષે થોડું मामां आवे छेશિષ્ય પૂછે છે—હે ભદઃ પરિકર્મનું શું સ્વરૂપ છે? ઉત્તર–સૂત્રાદિકેને ગ્રહણ કરવાની યોગ્યતા પ્રાપ્ત કરવી અથવા અવસ્થિત વસ્તુના ગુણાધાન કરવા તેને પરિકમ કહે છે. આ પરિકમને હેતુ હેવાથી શાસ્ત્ર પણ પરિકર્મ શબ્દથી વ્યવહત થઈ ગયું છે. એ પરિકમે સાત પ્રકારના २ -(१) सिद्धपिरिभ (२) मनुष्यश्रेणिपरिभ, (3) पृष्ट श्रेणियपरिभ, (४) Aqसाद श्रेणुिपरिभ, (५) 6सपाहनश्रेणुि। परि४भ, (6) विडश्रेणिपरिभ, तथा (७) श्युतायुतश्रेणुिपरिभ, હવે શિષ્ય પૂછે છે–હે ભદન્ત! સિદ્ધ શ્રેણિકાપરિકમનું શું સ્વરૂપ છે? ઉત્તર–-સિદ્ધ શ્રેણિક પરિકર્મ નીચે પ્રમાણે ચૌદ પ્રકારનું કહેલ છે
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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