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________________ ६०९ जानबन्द्रिका टीका-अनुत्तरोपपातिकदशास्वरूपवर्णनम्. नवमागस्वरूपमाह. मूलम्-से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ? अणुत्तरोववाइदयासु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराइं उजाणाई चेइयाइं वणसंडाइं समोसरणाइं रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोगपरलोइया इढिविसेसा भोगपरिचाया पव्वजाओ परियागा सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ उक्सग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अंतकिरियाओ आघविजंति। अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्तावायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीओ। से गं अंगट्टयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, तिन्नि वग्गा, थावरा, सासयकडनिबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघतज्जंति पण्णविज्जति, परूविज्जति, दसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति से एवंआया, एवंणाया, एवं विण्णाया” इन समस्त पदो का अर्थ आचारांग के स्वरूप का निरूपण करते समय कर दिया गया है। इस प्रकार इस अंगमें उपर्युक्त प्रकार से अन्तकृत मुनियों की चरणसत्तरी तथा करण सत्तरी का आख्यान प्रज्ञापन आदि करने में आया है। ज्ञस तरह से अन्तकृतदशाङ्ग का यह स्वरूप जानना चाहिये। सू०५२॥ निकाइया, जिणपण्णता भावा, आघविज्जति पण्णविजंति परूविज्जिति दंसिजंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति से एवं आया एवं णाया एवं विण्णाया" એ બધાં પદેને અર્થ આચારાંગ સૂત્રનું સ્વરૂપનિરૂપણ કરતી વખતે આપી દીધો છે. આ રીતે આ અંગમાં ઉપર કહ્યા પ્રમાણે અંતકૃત મુનિઓની ચરણ સત્તરી તથા કરણ સત્તરીનું આખ્યાન, પ્રજ્ઞાપના આદિ કરવામાં આવ્યું છે. આ રીતે અંતકૃતદશાંગનું આ સ્વરૂપ સમજવું / સૂ. ૫ર ! न०७०
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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