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________________ मानवन्द्रिका टीका-उपासंकदशाणस्वरूपवर्णन. प्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते प्ररूप्यन्ते दर्श्यन्ते निदर्श्यन्ते उपदय॑न्ते । स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विज्ञाता, एवं चरणकरणप्ररूपणा आख्यायते । संख्येयानि अक्षराणि' इत्यादीनामर्थाः पूर्ववद्वोध्याः । उपसंहरन्नाहता एता उपासकदशा इति ॥ सू० ५१॥ अष्टमाङ्गस्य स्वरूपमाह मलम से किं तं अंतगडदसाओ ?, अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाइं चेइयाई वणसंडाइं समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहा इहलोइयपरलोइयइढिविसेसा भोगपरिचाया पव्वज्जाओ परियाया सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाई, अंतकिरियाओ आघविज्जति । अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगठ्याए अहमे अंगे। एगे सुयक्खंधे, अवग्गा, अट्ठ उदेसणकाला, अट्ट समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं निरूपण करते समय सूत्र ४५में लिखा जा चुका है। इस प्रकार यहां यह चरण करण का आख्यान प्रज्ञापन आदि किया गया है। यहां "प्रज्ञाप्यन्ते" आदि पांच पदों का संग्रह समझ लेना चाहिये। इनका अर्थ पहले कहा जा चुका है। यह उपासकदशांग के स्वरूप का वर्णन हुआ ॥ सू० ५१॥ સુધીનાં પદોને અર્થ આચારાંગનું સ્વરૂપનિરૂપણ કરતી વખતે લખાઈ ગયે છે. આ રીતે તેમાં ચરણ કરણનું આખ્યાન, પ્રજ્ઞાપન આદિ કરાયું છે. અહીં "प्रज्ञाप्यन्ते " माह पाय पहोना सब सभ देवन. तमना अर्थ પહેલાં કહેવાઈ ગયું છે. આ ઉપાસક દશાંગનાં સ્વરૂપનું વર્ણન થયુ | સૂ. ૫૧ છે.
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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