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________________ पानचन्द्रिका टीका-आधाराणस्वरूपवर्णनम्. ५६७ भावाः जीवादयः पदार्थाः अत्राचाराङ्गसूत्रे आख्यायन्ते सामान्यतया विशेषतया या कथ्यन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते वचन पर्यायादिभेदेन नामादिभेदेन वा कथ्यन्ते, प्ररूप्यन्ते स्वरूपतः कथ्यन्ते, दश्यन्ते उपमानोपमेयभावादिभिः कथ्यन्ते, निदयन्ते परानुकम्पया भव्यकल्याणापेक्षया वा निश्चयेन पुनः पुनर्दश्यन्ते, उपदय॑न्ते उपनय निगमनाभ्यां सकलनयाभिप्रायतो वा निश्शत शिष्यबुद्धी व्यवस्थाप्यन्ते। __ सम्पत्याचारागाध्ययनफलमाह-'से० ' इत्यादि । सः-आचारागस्वाध्येता ये समस्त जीवादिक पदार्थ जिसरूपमें तीर्थंकर प्रभुने प्ररूपित किये हैं उसी रूपसे इस आचारांगसूत्र में सामान्यरूप से अथवा विशेषरूप से कहे गये हैं। 'प्रज्ञाप्यन्ते' बचनपर्याय अदि के भेद से अथवा नाम आदि के भेद से प्रज्ञापित हुए हैं। 'प्ररूप्यन्ते' प्ररूपित हुए हैं-स्वरूप कथनपूर्वक प्रतिपादित हुए हैं। 'दयन्ते' उपमान उपमेय भाव प्रदर्शन पुरस्सर दिखलाये गये हैं। 'निदश्यन्ते' निदर्शित किये गये हैं-दूसरे जीवों की दया से अथवा भव्य जीवों के कल्याण की भावना से पुनः पुनः कहे गये हैं, 'उपदयन्ते' उपनय तथा निगमन द्वारा अथवा समस्तनयों द्वारा शिष्यजनों की बुद्धिमें निश्चित रूपसे व्यवस्थापित किये गये हैं। ___ अब सूत्रकार इस आचारांग श्रुत के अध्ययन के फल को प्रकट करने के अभिप्राय से कहते हैं-'से एवं आया० ' इत्यादि । जो प्राणी इस દિક પદાર્થ જે રૂપે તીર્થંકર પ્રભુએ પ્રરૂપિત કર્યા છે એજ રૂપે આ આચા२॥ सूत्रमा सामान्य रीते अथवा विशेष३पेस छ. “प्रज्ञाप्यन्ते" क्यन, વચન પર્યાય આદિના ભેદથી અથવા નામ આદિના ભેદથી પ્રજ્ઞાપિત થયાં છે. "प्ररूत्यन्ते" प्र३पित थयां छे-२१३५ ४थनपूर्व प्रतिपाहित थयां छे. "दृश्यन्ते" उपमान पमेय माप प्रशन सहित शिविवामां माव्यां छ. "निदश्यन्ते" निहશિત કરાયા છે-બીજા ની દયાથી અથવા ભવ્ય જીવોનાં કલ્યાણની ઈચ્છાથી श्री श्रीन उपाय . "उपदश्यन्ते" पनय तथा निगम द्वारा अथवा समस्त નદ્વારા શિષ્યજની બુદ્ધિમાં નિશ્ચતરૂપે કસાવવામાં આવેલ છે. હવે સૂત્રકાર આ આચારાંગ સૂત્રના અધ્યયનના ફળને પ્રગટ કરવાના तुथी ४ छ -“से अवं आया० "त्यादि.२ प्रा मा मायासंग सुनना
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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