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________________ पानचन्द्रिका टीका-आचाराङ्गस्वरूपवर्णनम्. आसेवनशिक्षा च, यद्वा-शिष्यशिक्षा, भाषा-सत्या असत्या मृपा च, अभापा-- असत्या सत्यमृषा च, चरणं-व्रतादिकं, करणं-पिण्ड-विशुद्धयादिकम् । उक्तञ्च (५) (१०) (१७) (१०) (९) वय समणधम्म संजम, वेयावच्चं च वंभगुतीओ। (३) (१२) (४) (७०) णाणाइतियं तव कोहनिग्गहारे चरणमेयं ॥७०॥ (४) (५) (१२) (१३) (५) पिंडविसोही समिई, भावण पडिमा य इंदियनिरोहो । (२५) (३) (४) (७०) । पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहा चेव करणं तु॥ है। विनय जन्य कर्मक्षयादि रूप फल का नाम वैनयिक है । ग्रहणशिक्षा तथा आसेवनशिक्षा के भेद से शिक्षा दो प्रकार की बतलाई गई है। अथवा मुनिजन जो अपने शिष्यवर्ग को शिक्षा देते हैं वह शिक्षा भी शिक्षा शब्द से यहां गृहीत हुई है। भाषा-सत्य, असत्यामृषारूप, अभाषा-असत्य, सत्यमृषारूप है। व्रतादिकका आचरण यह चरण है। पिण्डविशुद्धि आदि करण है । कहा भी है __(५) (१०) (१७) (१०) "वय समणधम्म संजम, वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। (९) णाणाइतियं तव कोह निग्गहाई चरणमेयं (७०)॥१॥ વિનયજન્ય કર્મક્ષયાદિરૂપ ફળનું નામ વૈનયિક છે. શિક્ષા બે પ્રકારની બતાવી छ-(१) र शिक्षा, तथा (२) मासेवन शिक्षा. अथवा मुनिन पाताना શિષ્યોને જે શિક્ષા આપે છે તે પણ શિક્ષા શબ્દથી અહીં ગ્રહણ કરવામાં मावेस छ. भाषा-सत्य, सत्याभूषा३५, मसापा-मसत्य, सत्यभूषा३५ छे. ત્રતાદિકનું આચરણ તે ચરણ કહેવાય છે. પિંડવિશુદ્ધિ આદિ કરણ છે. કહ્યું પણ છે "वय समणधम्म संजम, वेयावच्च च वंभगुत्तीओf णाणइतियं तव कोह निग्गहाई चरणभेदं (७०) ॥११॥
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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