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________________ मानचन्द्रिका टीका-संक्षेपतो मतिज्ञानप्ररूपणम्. संप्रति मतिज्ञानपर्यायशब्दानाह-'ईहा०' इत्यादि । ईहनम् ईहा सदर्थपर्यालोचनम् । अपोहा निश्चयः। विमर्शः विमर्शनम्-अवायात् पूर्व ईहायाश्चोत्तरः प्रायः 'शिरकण्डूयनादयः पुरुषधर्मा इह न घटन्ते' इति संपत्ययः, ईहाऽवायमध्यवर्ती प्रत्यय इत्यर्थः। तथा-मार्गणा-अन्वयधर्मान्वेपणरूपा । च शब्दः समुच्चयार्थः । गवेषणा व्यतिरेकधर्माऽऽलोचनम् । तथा-संज्ञा-संज्ञान, व्यजनावग्रहोत्तरकालभावी मतिविशेष इत्यर्थः। स्मृतिम् स्मरणं-पूर्वानुभूतार्थालम्बनः प्रत्ययनिसृत शब्दों को नहीं, कारण के वे श्रेणिके अनुसार गमन कर जाते हैं और उनमें प्रतिघातका उस समय अभाव रहता है ॥५॥ ____अब मतिज्ञानके पर्यायवाची शब्दों को सूत्रकार बतलाते हैं'ईहा०' इत्यादि। मतिज्ञानके पर्यायवाची नौ नाम इस प्रकार हैं-ईहा १, अपोह २, विमर्श ३, मार्गणा ४, गवेषणा ५, संज्ञा ६, स्मृति ७, मति ८, प्रज्ञा ९ । सदर्थका विचार करना इसका नाम इहा १, उस वस्तुका निश्चय हो जाना अपोह २, अवाय के पहिले एवं ईहाके बाद होनेवाले विचारके नाम विमर्श ३, एवं अन्वय धर्मों का अन्वेषण करना मार्गणा है ४। व्यतिरेक धर्मों की आलोचना करना इसका नाम गवेषणा है ५ । व्यञ्जनावग्रहके उत्तरकालमें जो मतिविशेष होता है वह संज्ञा है ६ । पूर्व में अनुभूत अर्थका स्मरण करना इसका नाम स्मृति है ७। अर्थका परिच्छेद हो जाने पर भी उस अर्थ के सूक्ष्म धर्मों का आलोचन करना શ્રેણિ પ્રમાણે ગમન કરે છે. અને તેમનામાં તે સમયે પ્રતિઘાતનો અભાવ રહે છે | ૫ | वे भतिज्ञानना पर्यायवाची शह। सूत्रा२ मतावे छ-" ईहा त्या મતિજ્ઞાનના પર્યાયવાચી નવ નામ આ પ્રમાણે છે-(૧) ઈહા, (૨) અપહ, (3) विभश, (४) भा , (५)गवेष!, (६) संज्ञा, (७) स्मृति, (८) भति मन (6) प्रशा. (१) सहना विया२ ४२॥ तेनु नाम 'ईहा' (२) ते परतुनी निश्चय थy rand नाम "अपोह" (3) मायनी पडेखi -मने डानी पछी थना२ वियानुं नाम "विमर्श" (४) भने अन्यधर्भानु अन्वेषण ४२७ ते "मार्गणा” छे. (५) व्यतिर धनी मासोयना ४२वी तेनु नाम "गवेपणा' जे. (६) व्यावना उत्त२ मा मतविशेष थाय छ तेनु नाम “संजा" छे. (७) पूर्व मनुमवेत अर्थ नु स्मरण ४२ तेनुं नाम " स्मृति " छे. (८) અર્થને પરિઝ છેદ થઈ ગયા પછી પણ તે અર્થના સૂરમધર્મોનું આલેચન કરવું
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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