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________________ Fe मन्दीसूत्रे ननु कथं विशेषसामान्यार्थावग्रहोऽवलम्वनमिति चेत्, उच्यते - इह 'शब्दोऽयम् ' इत्यपि ज्ञानं विशेषावगमरूपत्वादवायज्ञानम् । तथाहि शब्दोऽयं नाशब्दो रूपादिरिति शब्दस्वरूपावधारणं विशेषावगमः । अतो यत् पूर्वमनिर्देश्यसामान्यमात्रग्रहणमेकसामायिकं स पारमार्थिकोऽर्थावग्रहः । ततः ऊर्ध्वं तु यत् 'किमिद' - मिति विमर्शनं सा ईहा । तदनन्तरं शब्दस्वरूपावधारणं ' शब्दोऽयम् ' इति भवति “यह कुछ है " ऐसा अर्थावग्रह होता है । अवग्रहता और उपधारणता ये दोनों प्रकाशरूपज्ञान व्यापार व्यंजनावग्रह स्वरूप होते हैं । एक सामयिक जो सामान्यरूप अर्थ का अवग्रहरूप बोध परिणाम होता है वह श्रवणता है ३ | तथा विशेष और सामान्यरूप अर्थ का जो अवग्रहरूप बोध परिणाम होता है, अर्थात् जो विशेष सामान्यार्थावग्रह होता है उसका नाम अवलम्बनता है ४ । शंका - विशेष सामान्यार्थावग्रह को आप अवलम्बन कैसे कहते हैं ? उत्तर- 'शब्दोऽयम्'- यह शब्द है, इस प्रकार का ज्ञान विशेषावगमरूप होने से अवायज्ञान है, क्यों कि यह शब्द है, अशब्द रूपादि नहीं है, इस प्रकार शब्दस्वरूप के अवधारक होने से यह अवायज्ञान विशेषावगम है | अवायज्ञान विशेषावगमस्वरूप इस प्रकार होता है । सर्व प्रथम जो अनिर्देश्य एक समयपर्यन्त सामान्य मात्र का ग्रहण होता है वह पारमार्थिक अर्थाग्रवह है । इस प्रकार अर्थावग्रह होने के बाद जो 'शब्दोऽयम्' - इस प्रकार शब्दस्वरूप का अवधारण होता है “ આ કંઈક છે” એવા અવગ્રહ થાય છે. અવગ્રહણુતા અને ઉપધારણતા એ બન્ને પ્રકાશરૂપ જ્ઞાનવ્યાપાર વ્યંજનાવગ્રહસ્વરૂપ હોય છે. જે સામાન્યરૂપ અર્થના અવગ્રહરૂપ મેધ પરિગ્રામ એક સામયિક હોય છે તે શ્રવણુતા છે ૩, તથા વિશેષરૂપ અને સામાન્યરૂપ અના જે અવગ્રહરૂપ મેધ પરિણામ હોય છે એટલે કે જે વિશેષસામાન્યાર્થાવગ્રહ થાય છે. તેનું નામ અવલખનતા છે ૪. શકા—વિશેષ સામાન્યાર્થાવગ્રહને આપ અવલખન કેવી રીતે કહેા છે ? उत्तर—“शब्दोऽयम्” मा शब्द छे. आ अारनुज्ञान विशेषावगम३य होवाथी अवाय ज्ञान छे, अरण है या शब्द छे, शब्द ३याहि नथी, या अरे શબ્દસ્વરૂપનું અવધારક હાવાથી તે અવાયજ્ઞાન વિશેષાવગમ છે. અવાયજ્ઞાન વિશેષાવગમસ્વરૂપ આ પ્રકારે હોયછે. સર્વોપ્રથમ જેઅનિર્દેશ્ય એકસમય સુધી સામાન્ય માત્રનું ગ્રહણ થાય છે, તે પારમાર્થિકઅર્થાવગ્રહ છે, આ રીતે અર્થાवथड थया पछी ? “ शब्दोऽयम् ” मा अारे शब्दस्वनुं अवधार थाय छे, ते
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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